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( २ )
गूगा पीर
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अग्रवाल जाति का गूगा पीर के साथ विशेष सम्बन्ध है । प्रायः सभी प्रान्तों के अग्रवाल गूगा को मानते हैं, और भाद्रपद के महीने में जब गूगा का मेला लगता है, तो उसमें बड़े उत्साह के साथ शामिल होते हैं । जो लोग इस अवसर पर गूगा की समाध पर पूजा करने के लिये जा सकते हैं, वे वहां जाते हैं । जो समाध पर लगे मेले में शामिल नहीं हो सकते, वे अपने यहां ही गूगा का सम्मान करते हैं। गूगा की पूजा के तरीके सब स्थानों पर अलग अलग हैं। मध्य प्रान्त के नीमार नामक स्थान पर गूगा की पूजा के लिये तीस हाथ लम्बा एक डण्डा लेकर इस पर कपड़े और नारियल बांधे जाते हैं। श्रावण भाद्रपद में प्रायः प्रतिदिन भंगी लोग इस डण्डे का जलूस शहर में निकालते हैं। लोग उसके सम्मुख नारियल भेंट करते हैं । अनेक अग्रवाल उसकी पूजा के लिये सिन्दूर आदि भी देते हैं । कुछ उसे अपने घर पर विशेष रूप से निमन्त्रित करते हैं, और रात भर अपने पास रखते हैं। सुबह होने पर अनेक भेंट उपहार के साथ उसे विदा दी जाती है । संयुक्तप्रान्त, बिहार, पंजाब आदि में भी गूगा की पूजा के लिये इससे मिलती जुलती पद्धति प्रचलित है । यह गूगा कौन था ? इस सम्बन्ध में बहुत सी किम्वदन्तियां प्रचलित हैं । एक किम्वदन्ती के अनुसार उसके पिता का नाम वच्चा था जाति से चौहान राजपूत था । कुछ का ख्याल है, कि उसके पिता का नाम वचा नहीं, अपितु जेवर था । पिता की मृत्यु के बाद वह स्वयं राजा बना । उसका राज्य हांसी से गरा तक विस्तृत था । उसकी
वचा
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