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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास २४८ बैठे—इसमें भी रतनचन्द का बड़ा कर्तृत्व था। सैयद बन्धुत्रों में अनेक बार लड़ाई के अवसर उपस्थित हुवे, पर रतनचन्द ने उनमें फूट नहीं होने दी । सैयद वन्धुओं के सूत्र का संचालन करने वाला रतनचन्द ही था । वह उनका अपना दीवान था, और इसी पद पर रह कर उसने कुछ समय के लिये मुगल बादशाहत का संचालन किया था।
सन् १८२० में बादशाह मुहम्मदशाह के शासन काल में इलाहाबाद के सूबेदार राजा गिरधर बहादुर ने विद्रोह किया । यह विद्रोह बड़ा विकट रूप धारण करता जाता था, और आसपास के बहुत से मुगल पदाधिकारी राजा गिरधर के पक्ष में होते जाते थे । इसका उपाय करने के लिये राजा रतनचन्द को भेजा गया। रतनचन्द ने एक बड़ी सेना को साथ लेकर इलाहाबाद के लिये प्रस्थान किया। उसके साथ अनेक प्रसिद्ध मुगल सेनापति भी थे, जिनमें मुहम्मद खां बंगश और हैदरअली
खां मुख्य हैं । ये इस आक्रमण में रतनचन्द के आधीन कार्य कर रहे थे। रतनचन्द अपनी नीति कुशलता से राजा गिरधर को वश में लाने में समर्थ हुवा । उसे इलाहाबाद से हटाकर अवध का सूबेदार नियत किया गया, और राजा गिरधर रतनचन्द के प्रयत्न से मुगल बादशाहत का पक्षपाती हो गया।
इस सफलता के उपलक्ष में रतनचन्द का आगरा में बड़ी धूमधाम से स्वागत हुवा । उसे दो हजारी के स्थान पर पांच हजारी का दर्जा दिया गया, और वह मुगल दरबार के सब से प्रमुख पदाधिकारियों में गिना जाने लगा। उसे इनाम के तौर पर बहुत से बहुमूल्य उपहार भी दिये गये।
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