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मध्यकाल में अग्रवाल जाति
गद्दी से उतार कर धूल में मिला देते थे । इसीलिये इतिहास में उन्हें राजाओं का भाग्य विधाता ( King maker ) कहा गया है ।
राजा रतनचन्द मुजफ्फरनगर जिले में जानसठ के निवासी थे 1 सैयद बन्धु भी वहीं के रहने वाले थे । रतनचन्द की सैयदों के साथ बड़ी मित्रता थी वे उसे बहुत मानते थे । संयद बन्धुओं की उन्नति के साथ साथ राजा रतनचन्द की भी उन्नति होती गई, और समय में वह मुगल बादशाहत के भाग्य विधाताओं में हो गया ।
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कुछ ही
फरुखसियर ने अपना प्रधानमन्त्री ( वजीर ) कुतुब-उल-मुल्क सैयद अब्दुल्ला खां को बनाया था । वजीर स्वयं तो भोग विलास में मस्त रहता था, राज्यकार्य की उसे कोई चिन्ता न थी । सारा राज्यकार्य राजा रतनचन्द के अधीन था । उसे मुगल बादशाह की तरफ से राजा का खिताब मिला था, और साथ ही दरबार में दो हजारी का दर्जा दिया गया था । कुतुब-उल-मुल्क की गफलत का परिणाम यह हुवा, कि उसके प्रतिस्पर्धी मीरजुमला की शक्ति दरबार में बढ़ने लगी । रतनचन्द इससे बहुत चिन्तित हुवा, और उसने मीरजुमला के मुकाबले में कुतुबउल-मुल्क की हैसियत तथा अधिकारों की रक्षा के लिये बड़ा प्रयत्न किया । कुतुब-उल-मुल्क सैयद अब्दुल्ला खां और मुगल बादशाहत पर उसका कितना प्रभाव था, इसका अनुमान निम्न लिखित घटनाओं से किया जा सकता है। 1
सिक्खों के नेता वैरागी बन्दा की गिरफ्तारी के बाद मुगल बादशाहत की ओर से सिक्खों पर घोर अत्याचार हो रहे थे । प्रतिदिन सैकड़ों की
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