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मध्यकाल में अग्रवाल जाति
निरन्तर उन्नति करते गये। जब दिल्ली पर अंग्रेजों का अधिकार स्थापित हुवा, तो लाला राजाराम के वंशजों का लेनदेन ( बैकिंग ) का कारबार सब से बढ़ा चढ़ा था । इसीलिये १८२५ में लाला शालिगराम ( जो उस समय मुखिया थे ) को ब्रिटिश सरकार ने दिल्ली में सरकारी खजाञ्ची के महत्वपूर्ण पद पर नियत किया। सन १८५७ में गदर के समय में लाला शालिगराम ने सरकार की मदद की। इसके लिये उन्हें वजीरपुर नाम का ग्राम जागीर में मिला । इसका बड़ा भाग अब तक भी उनके वंशजों के पास है।
ख. तोपखानेवालों का खानदान दिल्ली में एक अग्रवाल परिवार है, जिसे तोपखाने वाला कहा जाता है। इस परिवार का यह नाम इसलिये पड़ा, कि इनके एक पूर्वज दीवान जयसिंह हुवे, जो मुगल बादशाह शाह आलम के समय में तोपखाने के अफसर थे । दीवान जयसिंह के बाद यह पद उनके वंश में वंशक्रमानुगत रूप से रहा। आगे चलकर इस परिवार के मुखिया को राजा का खिताब भी मुगलों की तरफ से प्रदान किया गया । सन् १८५७ के गदर के समय में राजा दीनानाथ मुगलों के तोपखाने के अफसर थे । गदर में उन्होंने अंग्रेजों का पक्ष लिया, और इसीलिये बृटिश सरकार की तरफ से उन्हें बहुत इनाम दिये गये। दीवान जयसिंह अग्रवाल तथा उनके वंशजों का मुगलों के तोपखाने का अफसर होना सूचित करता है, कि मध्यकाल में अग्रवाल लोग सैनिक सेवा से संकोच न करते थे, और अपनी योग्यता के आधार पर वे सेना में ऊँचे पद प्राप्त कर सकते थे ।
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