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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास २३६ इसी वंश में आगे चल कर जो भी पुरुष हुवे, सब मुग़ल दरबार में कार्य करते थे । उनमें राय इन्द्रमान बहुत प्रसिद्ध हुवे । राय इन्द्रमान ने बहुत उन्नति की, और शाहजहां के समय में दीवान के महत्त्वपूर्ण पद तक पहुंच गये । मुगल बादशाह से उन्हें 'राजा' का खिताब प्राप्त हुवा।
राजा इन्द्रमन के पौत्र राय ख्यालीराम हुवे । इनके समय में मुगल बादशाहत निर्बल हो चुकी थी, और वृिटिश लोगों की शक्ति भारत में बढ़ रही थी। बंग ल ब्रिटिश लोगों के हाथ में आ चुका था, और साथ ही बिहार पर भी अंग्रेजों का आधिपत्य स्थापित होरहा था । राय ख्यालीराम बादशाह शाहआलम के समय में बादशाह के वकील थे, और बिहार प्रान्त के नायब दीवान सूबा हो गये थे । इनको शाहआलम बहुत मानते थे, और बादशाह के बहुत गुप्त काम इनको सौंपे जाते थे। शाहआलम के अंग्रेजों से संधि करने पर जब बिहार अंग्रेजों के हाथ में आया, तो भी ये बिहार के डिप्टी गवर्नर रहे । लार्ड क्लाइव ने इन्हें राजा बहादुर की पदवी प्रदान की थी। आगे चल कर जब ईस्ट इन्डिया कम्पनी ने बिहार प्रान्त की मालगुजारी व अन्य आमदनी को ठेके पर देना शुरू किया, तो इस सारे सूबे की राजकीय आमदनी का ठेका राजा ख्यालीराम बहादुर ने राजा व ल्याणसिंह के साथ मिलकर उनतीस लाख रुपये में ले लिया । राजा ख्यालीराम के प्रबन्ध से जनता सन्तुष्ट हुई । इससे पूर्व ईस्ट ईण्डिया कम्पनी के अंग्रेज कर्मचारी मालगुजारी तथा अन्य कर वसूल करने के लिये जनता पर बड़े अत्याचार करते थे-- लोग उनसे बड़े तंग थे। पर राजा ख्यालीराम के प्रबन्ध से उन्हें संतोष हुवा, और बिहार का प्रबन्ध बड़ी शान्ति तथा
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