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मध्यकाल में अग्रवाल जाति
विद्रोह भीखे में शुरू होगया। सरदार आलासिंह राजा अमर सिंह की दूसरी विधवा रानी खेमकौर का भाई था। राजदरबार में स्वाभाविक रूप से उसका बड़ा प्रभाव था । इस तीसरे विद्रोह ने बड़ा विकट रूप धारण किया । पर दीवान नन्नूमल जरा भी विचलित नहीं हुवा । उसने एक बड़ी भारी सेना एकत्रित की, जिसमें पटियाला, जींद, नाभा, मलेरकोटला, भदौड़ और रामघरिया राज्यों की फौजें शामिल थीं। दीवान नन्नूमल ने इस सेना के साथ विद्रोहियों का खूब मुकाबला किया
और अन्त में उन्हें परास्त किया । जब सरदार आलासिंह ने देखा, कि दीवान का मुकाबला कर सकना असम्भव है, तब एक दिन रात के समय अवसर पाकर वह भाग निकला और अपने घर तलवण्डी में जा पहुँचा । पर नन्नूमल ने वहां भी उसका पीछा किया और उसे कैद कर लिया।
इसी बीच में सन् १७८३ में उत्तरी भारत में बड़ा भारी दुर्भिक्ष पड़ा । पटियाला में भी इसका बड़ा प्रकोप हुवा। इस अवसर पर जो अव्यवस्था हुई, उससे लाभ उठाकर पटियाला के सरदारों में विद्रोह की प्रवृत्ति फिर प्रबल होने लगी। पर दीवान नन्नूमल अब भी विचलित न हुवा । वह असाधारण योग्यता का मनुष्य था--आपत्ति के समय में उसकी शक्ति और भी बढ़ जाती थी। उसने लखनऊ से खूब सीखे हुवे तोपचियों को बुलाया और ऐसे आफिमर भी नौकरी में रखे, जो पटियाला की सेना को नये यूरोपियन ढंग से संगठित कर सकें। इस सेना की मदद से उसने इन नये विद्रोहों को भी सफलता से परास्त किया । इन्हीं युद्धों में दीवान को तलवार से चोट आई और कुछ समय के लिये
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