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भारतीय इतिहास के वैश्य राजा
सम्भवतः धारण गोत्री गुप्तों के प्रतिनिधि हैं। श्री जायसवाल जी के बाद श्रीयुत दशरथ शर्मा ने बिहार एण्ड उड़ीसा रिसर्च सोसाइटी के मुखपत्र में एक लेख द्वारा प्रगट किया है, कि बीकानेर रियासत के जाटों में एक भेद धारणिया है। अतः गुप्त सम्राटों का प्रतिनिधि बीकानेर के इन धारणिया जाटों को समझना अधिक उपयुक्त है, अमृतसर के धेन जाटों को नहीं ।
(२) कौमुदी महोत्सव नामक संस्कृत नाटक में एक राजा चण्ड सेन का वृतान्त है, जिसने कि मगध को जीत कर अपने अधीन कर लिया था । उसने पश्चिम की तरफ से पाटलीपुत्र पर आक्रमण किया था । इस चrsसेन को कारस्कर लिखा गया है । कारस्कर नाम की एक जाति पंजाब में रहती थी, जो पंजाब के निवासी वाहीकों व जात्रिकों ( जाटों ) की एक शाखा थी । श्री० जायसवाल जी के अनुसार कौमुदी महोत्सव का चण्डसेन और गुप्तवंश का चन्द्रगुप्त एक ही हैं । अतः चन्द्रगुप्त की जाति कारस्कर हुई, और उसका पंजाब की तरफ से आक्रमण कर मगध पर अधिकार करना सूचित होता है ।
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(३) गुप्त सम्राट् अपनी जाति कहीं भी प्रगट नहीं करते । इससे अनुमान होता है, कि वे उच्च जाति के नहीं थे । सम्भवतः उन्होंने जान बूझ कर अपनी जाति को छिपाया है ।
श्री० जायसवाल जी की इस युक्ति परम्परा पर विचार करने की आवश्यकता | गुप्त सम्राटों की जाति को निश्चित करने का एक अच्छा साधन कुमारी प्रभाकर गुप्ता का धारण गोत्र है । यह धारण गोत्र ढैरण (धरण) की शकल में वैश्य अग्रवालों में भी पाया जाता है । इसके
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