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भाटों के गीत
अग्राहे उत्पत भये साढ़े सत्रह गोत्र साढे मत्रा गोत्र पवित्र नर अग्रवाल सुयश बसो अग्रवाल के वंश को जानत सकल जहान तापे चंवर ढुले छत्र फिरे देत बड़े रे दान अग्रवाल भूपाल दान दे मान बढ़ावै अग्रवाल भूपाल कीर्ति कुल जस कुमावै अग्रवाले वंश में गढ़ अग्रोहा स्थान करो काम सब धर्म का सदा बधो कल्याण पीताम्बर धोती बनी केशर तिलक चढ़ाय पति अग्रसन के बैठे चवर दुलाय एक लख निशान पदम दश रावल राणी पंदरसो पखरेत भयो अकाश वाण। नाम कमल के कमल कमल के केश मंह तल वंद पुरागा समर्थ समझ लियो दोय जात ब्रह्मा रचि श्री अग्रवाल उत्पत है एक वन ओंकार दोय धरति धर अम्बर तीन कहुँ त्रिलोक चार जस वेद भनन्तर पांच रचे ब्रह्माण्ड छटे दर्शन के मन्दिर सिपत कमन के रिषन सर वर योगीन्द्र दश कहुँ अवतार एक ध्रुव अग्यारह इन्द्र
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