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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास
२०६
शूरसेनस्य हृदयं तीर्थयात्रेषगा!ऽभवत् ॥११२ भ्रातुराज्ञा परिगृह्य समहिष्योऽगमत्तदा दशनागास्तु प्राच्यन्ते द्विपञ्चाशततुरङ्गमाः ॥११३ पश्चाशीतिर्हि शकटाः मानुषाणां शतद्वयम् बहुद्रव्यं समादाय............ ॥११४ माघशुक्लपञ्चम्या सोऽगमत् शूरसेनकः ॥११५
[ इसके अनन्तर 'उरुचरितम्' का अग्रवाल- इतिहास से कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है । इसलिये उसे उद्धृत करने की हम कोई
आवश्यकता नहीं समझते। आगे संक्षेप में कथा इस प्रकार है, कि शूरसेन विविध जंगलों, पर्वतों तथा नगरों की यात्रा करता हुवा दस मास के बाद वापिस हुवा । लौटते हुवे रास्ते में मथुरा में पड़ाव डाला। उन दिनों मथुरा में चन्द्रवंश के सम्राट उरु का राज्य था । जब महाराज उरु को अग्रसेन के छोटे भाई शूरसेन के पधारने का समाचार मिला, तो वह बड़ा प्रसन्न हुवा । उसने अपने अतिथि का बड़े समारोह से स्वागत किया और उसे अपनी राजसभा में श्रामन्त्रित किया। शूरसेन ने महाराज उरु की राजसभा की जब दशा देखी, तो बड़ा दुखी हुवा ।
भाई की आज्ञा लेकर अपनी रानियों के साथ शूरसेन ने तीर्थयात्रा शुरू की। उसने दस हाथी, सौ घौड़े, पचासी गाड़ियां तथा दो सौ मनुष्य साथ लिए । बहुत सा धन भी साथ लिया, और माघ शुक्ला पंचमी को यात्रा प्रारम्भ की। ११३-११५
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