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उरु चरितम्
गवनी ह्यष्टादशतमो....... इति स्मृतः । शूरसेनस्य गोत्राणां वृत्तान्तं श्रूयतामथ ॥१०७ शूरसेनस्य द्वाभ्यां वै नारिभ्यां दशपुत्रकाः । सुपात्रायास्तु पुत्राणां गर्गगावाल गोयलाः ॥१०८ माद्रयास्तु........सप्तगोत्राणि सन्ति हि सिंहलात् ढिंगलान्तं हि निश्चितमिदमुच्यते ॥१०६ यज्ञकार्य समाप्तिस्तु यदा जाता तदैव हि अभ्यागताः प्रेषिताः स्वयं तु विधिपूर्वकम् ॥११० देशे निवसतौ तौ हि भ्रातरौ सुखपूर्वकम् किञ्चित्कालस्य पश्चात् वै भो विद्याधर श्रूयताम् ॥१११
अग्रसेन के वंशजों के गोत्र निम्ननिलित हैं—गर्ग, गोयल, गावाल, कांसिल आदि जिनमें अठारहवां गवन कहा गया है । १०६ ___ अब शूरसेन के गोत्रों के नाम सुनो। शूरसेन के दो स्त्रियों से दस पुत्र हुवे । सुपात्रा के पुत्रों के गोत्र गर्ग, गावाल और गोयल हैं । माद्री के पुत्रों के सात गोत्र हैं—सिंहल से लेकर टिंगल तक ऐसा निश्चित समझना चाहिये । १०७-१०९
जब यज्ञ कार्य समान हो गया, तो सब अभ्यागत लोग विधिपूर्वक विदा कर दिये गये । ११०
वे दोनों भाई देश में सुख पूर्वक निवास करते रहे । कुछ काल के बाद, हे विद्याधर ! यह सुनो कि शूरसेन के हृदय में तीर्थयात्रा की इच्छा उत्पन्न हुई । १ ११.११२
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