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अग्रवाल जाति का प्राचीन इतिहास
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श्रीनाथ का पुत्र था । महादेव के बाद यमाधर और फिर मलय और वसु क्रमशः राजा बने । वसु के बहुत से पुत्र थे, जिन्होंने पृथक् श्राठ राजवंशों की स्थापना की। पर वसु का राज्य उसके भाई नन्द को मिला | नन्द के बाद चन्द्रशेखर और फिर उसका पुत्र अग्रचन्द्र राजा बना । अग्रचन्द्र के साथ 'अग्रवैश्य वंशानुकीर्तनम्' ने अग्रसेन की वंशावलि समाप्त कर दी है, और यह शुभ इच्छा प्रकट की है, कि अग्रचन्द्र के पुत्र पौत्र तथा वंशजों से यह नगर सदा सुशोभित रहे ।
चन्द्र के बीच में जिन
'अग्रवैश्यवंशानुकीर्तनम् के अतिरिक्त अन्य किसी ग्रन्थ से अग्रसेन के वंशजों का परिचय नहीं मिलता है । भाटों के गीत केवल अग्रसेन की रानियों और पुत्रों के सम्बन्ध में वर्णन करते हैं। पर इस संस्कृत ग्रन्थका विवरण सर्वथा निराधार नहीं कहा जा सकता, क्योंकि कम से कम राजा दिवाकर का नाम जैन अग्रवालों में अब तक भी प्रचलित हैं I ऐसा प्रतीत होता है, कि अग्रसेन और राजाओं की नामावलि दी गई है, वह पूर्ण नही है । इस सूचि में अग्रसेन से दिवाकर तक केवल सात नाम हैं, जबकि इन दो राजाओं के बीच में कई शताब्दियों का अन्तर है । दिवाकर का काल तीसरी शताब्दी ईसवी पूर्व से पहले नहीं हो सकता । दूसरी तरफ अग्रसेन का काल कलियुग की पहली शताब्दी में है। संभवतः, 'अग्रवैश्यवंशानु कीर्तनम्' में केवल प्रसिद्ध राजाओं का ही उल्लेख है 1
ऊपर की सूचि में जो नाम दिये गये हैं, वे संस्कृत-साहित्य और शिलालेखों आदि में अन्यत्र कहीं नहीं पाये जाते हैं । इसका कारण केवल यह है, कि आग्रेय गण एक छोटा सा राज्य था । भारत के
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