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राजा अग्रसेन के उत्तराधिकारी
चली आती है, कि श्री लोहाचार्य स्वामी अगरोहा गए और वहां उन्होंने बहुत से अग्रवालों को जैनधर्म की दीक्षा दी। जैनों के अनुसार उस समय अगरोहा में राजा दिवाकर राज्य करते थे। वे श्री लोहाचार्य स्वामी के शिष्य हो गए और उनके अनुकरण में अन्य बहुत से अगरोहानिवासियों ने जैन धर्म को स्वीकार किया । अग्रवालों में बहुत से लोग जैन धर्म के अनुयायी हैं। ये सब श्री लोहाचार्य स्वामी को अपना गुरु मानते हैं।
इस अनुश्रुति का प्रमाण जैन ग्रन्थों में ढूंढ सकना सुगम नहीं है। जैन पुस्तकों में दो लोहाचार्यों का उल्लेख आता है, पहले चन्द्रगुप्त मौर्य के समकालीन भद्रबाहु स्वामी के शिष्य श्री लोहाचार्य और दूसरे श्री सावन्तभद्र स्वामी, जिनका अन्य नाम लोहाचार्य भी था। ये आचार्य ईसा की दूसरी शताब्दी में हुए। यह कहना बहुत कठिन है, कि इन दो लोहाचार्यों में से किसने अगरोहा जाकर राजा दिवाकर को जैन धर्म में दीक्षित किया । पर 'अग्रवैश्य वंशानुकीर्तनम्' का भी राजा दिवाकर का उल्लेख करना और उसे जैन बताना सूचित करता है, कि जैन अग्रवालों में प्रचलित अनुश्रुति ऐतिहासिक तथ्य पर आश्रित है ।
दिवाकर के बाद सुदर्शन राजा बना। इसके विषय में लिखा है, कि वृद्धावस्था में राजगद्दी छोड़ कर वह सन्यासी हो गया और काशी में निवास करने लगा। उसके बाद महादेव राजगद्दी पर बैठा, जो
1. वृहज्जन शब्दार्णव पृष्ठ ६०६ 2. श्रुतावतार कथा पृष्ठ १४
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