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भूमिका |
Rs.22
स्थान महाराणाजी का उदयपुर
मिति माघ शुक्ला १० सं० १६३९
इस पुस्तक का नाम गणपाठ इसलिये है कि एकत्र मिला के बहुत २ शब्दों का समुदाय पठित है । यह पुस्तक पाणिनि मुनि जी का बन या है इस के काकर अष्टाध्यायी के सूत्र हैं यद्यपि काशिकादि पुस्तकों में तत्तत् सूत्र पर गणपाठ भी छप गया है तथापि बीच २ सूत्रों के दूर होने से गण भी दूर २ हैं इससे कण्ठस्थ करना विचारना वा तुष्टत्ति करना कठिन होता था इसलिये उस २ गणकार्य सूत्र को सार्थक लिख कर एक दो उदाहरण देके जहां २ एक ऐसा ( : ) चिन्ह बना के लिखा है वहां २ से गणपाठ का आरम्भ समझना चाहिये और जिस २ शब्द की विशेष व्याख्या अपेक्षित थी उस २ पर एक आदि अङ्क लिख और रेखा देकर नीचे विवरण (जिस को नोट कहते हैं ) लिखा है उस को भी यथायोग्य समझ लेना चाहिये इन के अर्थ अष्टाध्यायी निरुक्त faar और उणादिकोष तथा प्रकृति प्रत्ययादि की कहा से समझ लेना योग्य है । यद्यपि भ्वादि और उणादि भी एक २ सूत्र पर गरण हैं तो भी उन के बड़े और विलक्षण ( १ ) होने से पृथक् श्रीपाणिनि मुनिजी ने लिख हैं और सूत्र के समान वार्त्तिक गए हैं उनको भी वार्त्तिक के आगे लिख दिया है जो साधारणता से व्याकरण के बोध युक्त हैं वे भी इन का रूप और अर्थ पढ़ पढ़ा सकते हैं | अलमतिविस्तरेण विपश्चिद्वरशिरोमणिषु ॥
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दयानन्द सरस्वती
( १ भ्वादि धातु अनुबन्ध सहित और उणादि में प्रकृतिपत्ययसाधुत्व पूर्वक लेख है और सर्वादि में सिद्ध शब्दों का पाठ अनुक्रम से है इसीलिये उन दोनों ग से यह और इससे वे पृथक् २ रक्खे हैं ।
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