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आचा०
सूत्रम्
11८६९॥
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वा अप्परिहारिएणं सदि गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए पविसिज्ज वा निक्खमिज वा ।। से भिक्खू वा० वहिया वियारभूमि वा विहारभर्मि वा निक्खममाणे वा परिसमाणे वा नो अन्नउत्थिएण वा गारथिएण वा परिहारिओ वा अपरिहारिएण सद्धि बहिया वियारभूमि वा विहारभूमि वा निक्खमिज वा पविसिज्ज वा ।। से भिक्खू वा०
गामाणुगाम दूइजमाणे नो अन्नउथिएण वा जाव गामाणुगाम दूइजिज्जा (मू० ४) ते साधुए मृहस्थना घरमा प्रवेश करवो होय तो आटला माणसो साथे न जवू, अथवा पूर्व ते पेठो होय तो, तेनी साथे न नीकळवू. तेमनां नाम बतावे छे. (१) अन्य तीर्थिक ते लाल कपडा राखनारा बाबा विगेरे. गृहस्थो भीखना पिंड उपर जोवनारा में ब्राह्मण विगेरे. तेमनी साथे पेसतां नीचला दोपो थाय छे, जो पाछळ चाले तो तेओनी करेली इर्या प्रत्ययनो कर्मबंध लागे-जी
वरक्षा न थाय, तथा नैनशासननी निंदा थाय, तथा तेओनी जातिमा अहंकार थाय के आवा साधुओ पण अमारी पाछळ चाले छे ! ते प्रमाणे कदाच साधु आगळ चाले तो तेओने द्वेष उत्पन्न थाय, अथवा देनार असरल स्वभावी होय तो तेने द्वेष याय, अने वस्तु वहेंचीने आपेतो खराब वखतमा पूरो आहार न मळतां जीवननिर्वाह न थइ शके, तेन प्रमाणे परिहरण ते परिहार , ते परिहार सहित चाले, ते 'पारिहारिक' एटले पिंडदोष त्यागवाथी उद्युक्तविहारी (उत्तम) साधु छे, तेवा उत्तम गुणवाळा साधुए पासत्या, अवसन्न कुशील, संसक्त, यथाछंद एवा पांच प्रकारना कुसाधु साथे गोचरी न जवू, तेमनी साथे जतां अनेषणीय गोचरी आवे, अग्रहण दोष लागे एटले जो पासत्यो 'अनेषणीय' ले, तेवू साधु पण ले, तो तेनी प्रवृत्तिती प्रशंसानो दोष लागे, अने जो न ले तो असंखड विगेरे दोषो थाय, ते, जाणीने गोचरी लेवा माटे गृहस्थना घरमां तेवा साथे पेसे नहीं, तेम नीकळे
04-2016
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