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आचा
૮૬૮
सूत्र कहे छे. ते भावभिक्षु तेवी औषधिने असंपूर्ण टुकडा थएली अने अचित्त थयेली विनष्टयोनिवाळी दाळ बनावेली कंदली करेली त तथा फळी अचित्त थयेली अने भांगेली होय अने ते मासुक अने एषणीय (लेवायोग्य) होय अने गृहस्थ आपे तो कारण होय तो सूत्रम् | साधु तेने ले, लेवायोग्य अने न लेवा योग्यना अधिकारवाळा आहार विशेषज कहे छे:
॥८६८॥ से भिक्खू वा० जाव समाणे से जं पुण जाणिज्जा-पिढयं वा बहुरयं वा भुंजियं वा मधुं वा चाउलं वा चाउलपलंबं वा सइ संभजियं अफासुयं जाव नो पडिगाहिज्जा ॥ से भिक्खू वा० जाव समाणे से जं पुण जाणिज्जा-पिहुयं
वा जाव चाउलपलंबं वा असई भज्जियं दुक्खुतो वा तिक्खुत्तो वा भज्जियं फासुर्य एसणिज जाव पडिगाहिज्जा [मृ० ३] ते भावभिक्षु गृहस्थने घेर गयेलो पृथुक शाली तथा वरीने शेकीने धाणी बनावे, तेमां तुष विगेरेनी बहु रज होय, तथा घन विगेरेने मुंजेला (अडधा शेकेला) होय एटले एक बाजुथी के छेडा तरफथी शेक्या होय, अथवा तल, घ विगेरे शेक्या होय || तथा घउं विगेरे चूर्ण बनावी शेकेल होय अथवा शालीव्रीहीना तांदळा, अथवा तेनीज कणकी (चाउल पलंब) होय आबु कोइपण जातनुं अनाज विगेरे एकवार थोडुं शेक्युं होय, थोडु बीजा शस्त्रबडे मरडेलु कुटेलुं होय पण ते जो अप्रामुक अने अनेषणीय पोते | | मानतो होय तो तेवू अन्न ले नहि एथी विपरीत होय तो ते लेबु एटले अग्नि विगेरेथी वारंवार शेक्यु होय, अथवा पूरेपुरुं कुटा | होय, अने अधकाचु विगेरे दोषवाळु नहोय; अने मामुक होय तेवी खात्री थाय तो लाभ थतां जरुर होय तो साधु ग्रहण करे.
हवे गृहस्थना घरमा पेसवानी विधि कहेछे.से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइकुलं जाव पविसिउकामे नो अमउत्थिएण वा गारथिएण वा परिहारिभा
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