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3. पूर्वे बतावेल फासु जग्यामां जइने त्यां वारंवार आंखे जोईने रजोहरण विगेरेथी पुंजीपुंजीने परठवे. प्रत्युपेक्षण अने प्रमार्जनने आचा० | आश्रयी भांगा थाय छे.
लसूत्रम् (१) अप्रत्युपेक्षित अप्रमार्जित, (२) अप्रत्युपेक्षित प्रमार्जित (३) प्रत्युपेक्षित अप्रमार्जित. तेमां पण देख्या विना प्रमार्जन करतो ॥८६६॥ 15| एक स्थानथी बीजा स्थाने जतां त्रस जीवोने विराधे छे. अने देखीने पूज्या विना आवता पृथ्वीकाय विगेरेने विराधे छे, बाकीनार
॥८६६॥ चार भांगा नीचे मुजब छे.
(४) खराब रीते देखेखें अने पुंजेलु [५] खराब रीते देखेलुं बरोबर पुजेल (६) सारी रीते देखेखें खराब रीते पुजेलं (७) सारी रीते देखेखें. सारी रीते पुजेलु. तेथी आ सातमा भांगामां बतावेलो रीतिए स्थंडिल जोइने उत्तम साधु उपयोग राखीनेज | शुद्ध अशुद्ध पुंजना भागो परिकल्पीने त्यजे [परठवे]
हवे औषधिनी विधि कहे छे. से भिक्खू वा भिक्खूणी वा गाहावइ० जाव पवि? समाणे से जाओ पुण आसहीओ जाणिज्जा-कसिणाओ सासियाओ अविदलकडाओ अतिरिच्छच्छिन्नाभो अवुच्छिण्णाओ तरुणियं वा छिवाडि अणभिततभन्जियं पेहाए अफामुयं अणेसणिज्जति मन्त्रमाणे लाभे संते नो पडिग्गाहिज्जा ॥ से मिक्खू वा. जाव पविढे समाणे से जाओ पुण ओसहीओ जाणिज्जा-अकसिणाओ असासियाओ विदलकडाओ तिरिच्छच्छिन्नाओ खुच्छिन्नाओ तरुणियं वा छिवाडि अभिकंतं भज्जियं पेहाए फामुयं एसणिजति मन्त्रमाणे लाभे संते पडिग्गाहिज्जा ।। (मू०२)
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