________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
सूत्रम्
www.kcbatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 8. जोवी, तथा घउंना दाणा विगेरे अडकेल होय, हरित ते दरो जुव्हार विगेरे अंकुरावाळु लीलु घास होय, तेनी साथे मिश्र थइ गयु: आचा०
होय, तथा काचा पाणीथी भीजायलं होय, अथवा सचिच रजथी परिगुंडित (खरडायेलु) भोजन पाणी खादिम के स्वादिम होय
ते चारे प्रकारनो आहार देनारना हाथमां होय के गृहस्थना वासणमां होय, ते सचित्त अथवा आधाकर्म विगेरे दोषथी अनेषणीय ॥८६॥
॥८६॥ 15 (दोषित ) होय एवू जाणे तो ते भावभिक्षु मळतुं होय, तो पण न ले, आ उत्सर्गनी विधि छे, हवे अपवादनी विधि कहे छे. के |
द्रव्यादि एटले द्रव्य क्षेत्र काळ भाव विचारीने जरुर पडतां लेबु पडे तो ले पण खरो ते बतावे छे, द्रव्यथी ते द्रव्य जरुरर्नु होय, अने बीजे मळ, दुर्लभ होय, तथा क्षेत्रथी ते बधा साधुने साधारण गोचरी मळे तेम न होय एटले लोको दृष्टि रागी होय अथवा विशेषथी अन्यदर्शनीना रागी होय ? कालथी दुकाल विगेरे होय. अने भावथी ग्लान [मंदवाड] विगेरे होय, विगेरे कारणो होय तो गीतार्थ साधु लाभ विशेष होय अने दोप ओछो लागतो होय तो ते ले.
वळी कोइ बखत अजाणपणे जीवातवाळु अथवा जीव उत्पन्न थाय ( तेवू विदळ विगेरे ) उन्मिथ भोजन विगेरे लीधुं होय । तो तेनी परठववानी विधि कहे छे. " से अहच्च इत्यादि " एटले कोइवार उपयोग राखवा छतां पण भूल थी ओचिंतु संसक्त विगेरे भोजन लेवायु होय तो, ते 'अनाभोग' देनार, लेनार ए बेना भेदथी चार प्रकारनो थाय छ, [जेमके (१) साधुनो उप-1x
योग होय गृहस्थनो न होय, [२] ग्रहस्थनो उपयोग होय साधुनो न होय, [३] बन्नेनो उपयोग न होय, (४) बन्नेनो उपयोग & IM होय.] आवो आहार अशुद्ध आवेलो जणाय तो ते आहार लइने एकांतमा जाय, एटले ज्यां गृहस्थ लोक देखे नहि, तेम आवे |
पण नहि, ते एकांत स्थळ अनेक प्रकारचें होय छे. ते बतावे छे.
For Private and Personal use only