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आचा०
सूत्रम् ॥८६॥
॥८६२॥
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शस्त्रपरिज्ञा अध्ययनमा अभ्यंतर थाय हे.
हवे चूडाओर्नु यथास्व (पोतानु) परिमाण कहे छे. ___ जावोग्गहपडिमाओ पढमा सत्तिकगा विइअचूल।। भावण विमुत्ति आयारपक्कप्पा तिनि इअ पंच ॥ २९७ ॥
पिंडैषणा अध्ययनथी आरंभीने अवग्रह प्रतिमा अध्ययन सुधीमां सात अध्ययनोनी पहेली चूडा छे, सात सातनी एकेक ए बीजी चूडा छे, भावना नामनी त्रीजी छे, अने विमुक्ति नामनी चोथी चुडा छे, आचार प्रकल्प निशीथ छे, ते पांचमी चुडा छे, ते चुडानो नाम विगेरे निक्षेपो छ प्रकारनो छे. नाम स्थापना सुगम छे, द्रव्य चुदा व्यतिरिक्तमां-सचित्तमा कुकडानी, अचित्तमा मुकुटना चुडानी मणि छे. मिश्रमां मयूरनी छे, क्षेत्र चुडामां लोक निष्कुट रुप हे, काल चुडामा अधिक मासना स्वभाववाळी, अने भाव चुडामां आज चुडा छे. कारण के ते क्षायोपशमिक ( श्रुनज्ञान ) मां वर्ने छे. आ सात अध्ययन रुप छे, तेमां प्रथम अध्ययन पिढेषणा छे, तेना चार अनुयोगद्वार छे. नामनिष्पन्न निक्षेपामां पिंडैषणा अध्ययन छे, तेना निक्षेपद्वारे सर्वे पिंड नियुक्तिो अहीं | कहेवी, हवे सूत्रानुगममां अस्खलित विगेरे गुण युक्त मूत्र उच्चारवु जोइए, ते कहे छे.
से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविढे समाणे से जं पुण जाणिज्जा-असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा पाणेहिं वा पणगेहि वा बीएहि वा हरिएहि वा संसत्तं उम्मिस्सं सीओदएण वा आसित्तं रयसा वा परिघासियं वा तहप्पगारं असणं वा पाणं वा खाइमं वा साइमं वा परहत्यसि वा परपायंसि वा अफासुयं अणेसणिज्जति मन्त्रमाणे लाभेऽवि संते नो पडिग्गाहिजा ॥ से य आहञ्च पडिग्गहे सिया से तं आयाय
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