________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सूत्रम्
॥८६१॥
॥८६॥
आचा०प्रकारे वर्णव्यो छे, एम जाणवू. ___ -आ संयम संक्षेपथी कहेलो छे, ते केवी रीते विस्तारथी कहेवाय छे ? ते कहे छे.
एगविहो पुण सो संजमुत्ति अज्झत्थ बाहिरो य दुहा । मणवयणकाय तिविहो चउबिहो चाउजामो उ ॥२९३॥ अविरतिनो त्यागरूप एक प्रकारनो संयम छे अने तेज आध्यात्मिक [अभ्यंतर अने बाह्य एम वे भेद थाय छे, अने मन वचन कायाना योगना भेदथी त्रण प्रकारनो छे, तथा चार महाव्रतना भेदथी चार प्रकारनो छे,
पंच य महब्बयाई तु पंचहा राइभोभणे छट्ठा । सीलंगसहस्साणि य आयारस्सप्पवीभागा ।। २९४ ॥ पांच महाव्रतना भेदथी पांच प्रकारको अने रात्रिभोजन विरमण मेळवतो छ प्रकारे छे, ए प्रमाणे अनेक प्रक्रियाथी भेद पाडेला १८ हजार शीलांगना भेद सुधी परिमाणवाळो संयम थाय छे.
म०-पण आ संयम केवो छे ? उ-ते प्रवचनमां पांच महाव्रतना भेद तरीके वर्णवाय छे ते कहे .
___ आइक्खिउं विभइडं विनाउं चेव सुहतरं होइ । एएण कारणेणं महब्धया पंच पन्नता ।। २९५ ॥ पंच महाव्रतरूपे व्यवस्थापेलो होय, तो मुखेथी कहेवाय अने शिष्यने मुखेथीज समजाय, ए कारणथीन पांच महाव्रतो बतावेछ, अने ए पांच महावतो अस्खलित (संपूर्ण होय तोज फलवाळा (सिद्धि आपनार) थाय छे, तेवी तेनी रक्षामा यत्र करवो,ते कहे छे.
तेसिं च रक्खणट्ठा य भावणा पंच पंच इकिके । ता सत्यपरित्रए, एसो अभितरो होई ॥ २९३ ॥ ते महाव्रतोनी दरेकनी पांच पांच वृत्ति समान भावनाओ छे, ते बी आ बीजा अग्रश्रुत स्कंधमा कहेवाय छे, एथी आ
For Private and Personal Use Only