________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir A सूत्रम् // 1120 // . www.kobatirth.org प्रत्याख्यान परिज्ञावडे तुं परिहर अर्थात् सझसद् ना विवेकने जाणणनार हे पंडित मुनि ! तु महावतरुपनावबडे संसार-18 सागरने तरी जा, आ प्रमाणे जाणीने वर्ते छे तेज अलंकृत मोक्षमा जनार हे. // 10 // जहा हि बद्धं इह माणवेहि, जहा य तेसिं तु विमुक्ख आहेए / अहां तहा बन्धविमुक्व.जे विऊ, से हु मुणी अंतकडेत्ति बुच्चई // 1120 // मिथ्यात्व विगेरे जे प्रकारे प्रकृति स्थिति विगेरेथी आस्मा साथे जहपुद्गलने कर्मरुपे एकमेकं करी बांध्या छ, तेने आ | संसारमा मनुष्यो सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र वडे तोडे छे, तेज मोक्ष कयो छे, आ प्रमाणे बंध अने मोक्षतुं बरोबर सरूप जाणीने # ते प्रमाणे वर्तनार कर्मनो अंतकृत मुनि कहेवाय छे. // 11 // इमंमि लोए परए य दोसुवि, न विजई बंधण जस्स किंचित्रि / से हु निरालंबणमप्पइटिए, कलंकलीभावपहं विमुच्चइ 12 // त्तिबेमि / / विमुत्ती सम्मत्ता // 2-4 // आचारांगमूत्रं समाए / ग्रन्याय 2554 // आ लोक अने परलोकमा जेने जरापण बन्धन नथी, ते निरालंबन अर्थात् आ लोक परलोकनी आशंसा रहित क्यांय पण न बंधायेलो अशरीरी [मिद्ध] छे, तेज संसारमा गर्भादे रूप कलंक भावथी मुकाय छे. अर्थात् केवळोने के सिद्धोने फरी जन्म नथी-ा प्रमाणे प्रभु पासे जाणीने हुँ कई छ. हवे नयो कहे पूर्वे ज्ञान क्रियाना एकांत नयने अनुचित ठरावी सर्व नय संमत जैन शासन के एम बतांब्यु छे त्यांची जाणवं. आचारटीकाकरणे यदाप्त, पुण्यं मया मोक्षगमैकहेतुः / तेनापनीयाशुभराशिमुच्चैराचारमार्गमवणाऽस्तु लोकः // 1 // आचारांग मूत्रना अंतमां नीचली त्रण गाथाश्री छे. . . . . . ) For Private and Personal Use Only