________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आचा PRECACC0% A // 1119 // तहा विमुकस्स परिनचारिणो. घिईमो दुक्खखमस्स भिक्खुणो / विसुज्झई जंसि मलं पुरेकडं, समीरियं रुपमलं व नोइणा // 8 // उपर कहेला बोध प्रमाणे मूल उत्तर गुण धारीने पाळवाथी विमुक्त धयेल तथा मळेला ज्ञानथी ज्ञपरिज्ञावडे सद्भसदनो विवेक सूत्रम् समजीने चालनारो एटले प्रथम ज्ञानथी विचारीने पछी क्रिया करे छे, तथा संयममां धैर्य राखे, अशाता वेदनीय उदयमा आवतां दुःख आवे तो समताथी सहे, न खेद करे, तेमन तेनी शांति माटे वैद्य औषधनी पण घणी झंखना न करे, आवा भिक्षुनां पूर्व 4 // 1119 // | करेलां को जेम रूपानो मेल अनिथी दूर थाय छे, तेम तपश्चर्या विगेरेथी दूर थाय छे. - सापनी चामडीन दृष्टांत :से हु परिनासमयंमि वट्टई, निराससे उवरय मेहुणा चरे / भुयंगमे जुन्नतयं जहा चए, विमुच्चई से दुहसिज माहणे // 9 // उपर कहेला मूल उत्तर गुण, धारक साधु पिंडएषणा अध्ययनमा बतावेला अर्थ प्रमाणे परिज्ञा समये वर्ने छे, बोले ते, पाळे छे, तथा आ लोक परलोकनी आशंसा (आकांक्षा) रहित तथा मैथुनथी दूर, एटले पांचे महावत पाळनारी होय तेने जेम साप जुनी कांचळीने त्यागीने निर्मळ थाय, तेम पोते दुःख शय्या ते नरक विगेरेना भ्रमणथी मुकाय के. -: समुद्रनुं दष्टांत. :जमाहु ओहं सलिलं अपारय, महासमुहं व भुयाहि दुत्तरं / अहे य णं परिजाणाहि पंडिए, से हु मुणी अंतकडेति बुच्चई तीर्थकर अथवा गणधरो भुनाथी मोटो समुद्र तरवो दुर्लभ छ, ए दृष्टांते उपदेश आपे छे के जेम समुद्र पाणीथी भरेलो छे तेम आश्रव द्वारो छे, मिथ्यात्व विगेरे पार विनानुं पाणी छे, तेथी संसार सागर तरवो दुष्कर के एम जपरिज्ञा वडे जाणीने 2 E-STER-SER. R KI .. For Private and Personal Use Only