________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandit सूत्रम् // 1998 // - विद्वान ते काळने जाणनारो, नमेलो (विनयवान) प्रधान एवां शांति विगेरे धर्म पदोने जाणीने तृष्णाने दूर करेल. धर्मध्यान 4 आचा०॥ ध्यावतां अने बधी धर्म क्रियामां उपयोग राखतां तेनो तप तथा कीर्ति बधे छे. दिसोदिसंऽणंतजिणेण तारणा, महब्बया खेमपया पवेइया / महागुरु निपरा उईरिया, तमेव ते उत्तिदिसं पगासगा // 3 // // 1118 // भावदिशा तु एकेंद्रियादि सर्व जीवोने विषे क्षेमपद ते रक्षणस्थान रुप व्रतोने अनंत ज्ञानी जीनेश्वरे बताव्यां छे, ते सामान्य माणसथी न पळाय माटे महागुरु छ, अने ते व्रतो पाळवाथी पूर्वनां चीकणां कर्माने पण दूर करे छे, तथा अज्ञान अंधकार दूर है करवाथी त्रिदिशामा प्रकाश पडे ले, ते जेम अग्नि उपर नीचे अने तीरछो प्रकाश करे छे, एम आ महाव्रतो पण कर्म अंधकारने दूर करवाथी प्रकाशक छे. मूळ गुणोनी स्तुति करी उत्सर गुणो वर्णवे छे, सिएहि भिक्खुअसिए परिब्बए, असज्जमित्थीसु चइज पूयणं / अणिस्सिओ लोगमिणं तहा परं, न मिज्जई कामगुणेटिं पंडिए // 7 // म सिता ते आठ कर्मे करीने अथवा राग द्वेष विगेरेना कारणरूप गृहपाशथी बंधायेला गृहस्थो अथवा अन्य दर्शनीओ छे, तेमना पाशामा साधु पोते रागद्वेषथीन फसाय, अने पोताना संयम अनुष्ठानमां रक्त रहे; तथा खोश्रो साथे प्रसंग न राखतां पूजन प्रा तजे, अर्थात सत्कार मान पाननो अभिलापी न थाय, तथा आलोक तथा परलोकमा मुख छे एम मानीने विषय सुख विगेरनो पण अभिलाषी न थाय, आ प्रमाणे मनोज्ञ शन्दो विगेरेथी पण लोभाय नहि. तेज पंडित के. एटले परिणामे कडवां फळ विषय अभिलाषमां के एम जाणनारोन दीर्घदर्शी मुनि छे. -ACCIA-3-4-4 For Private and Personal Use Only