________________ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org चौथी भावना ए के निर्ग्रन्ये अधिक खानपान न वापर, तथा सरता रसवाडं खानपान न वापर; केमके केवळी कहे छ8 के अधिक तथा झरता रसवालु खानपान भोगवतां शांति भंग थवाथी धर्मभ्रष्ट थवाय माटे अधिक आहार के विशेश घी द्धवाळो / आहार निर्धन्ये न करवो ए चोथी भावना. // 1114 // पांचमी भावना ए के निये स्त्री, पशु, तथा नपुंसकथी घेरायेल शय्या तथा आसन न सेवां; केमके केवळो कहेछ के // 1114 // तेवां शय्या-आसन सेवतां शांतिभंग थवाथी निथ धर्म भ्रष्ट थाय माटे निये स्त्री, पशु पंडकथी घेरायेल शय्या आसन न सेवबां. / ए पांचमी भावना. एरीते महावत रुडीरीते कायाए करी स्पर्शित तथा यावत् आराधित थाय छे ए चोयुं महात्रत. or पांचमुं महाव्रत-"सर्व परिग्रह तनुं ई. एटले के थोडं के घj, नानु के मोटु, सचित के अचित, हुँ पोते लई नहि बीजाने हा लेबरावू नहि, अने लेताने अनुमत थाउं नहीं यावर तेवा भावने वोसरा छ. है तेनी आ पांच भावनाओ हे. त्यां पेली भावना ए के कानवी जीवे भला भूडा शब्द सांपला तेमां आसक्त, रक, गृद, मोहित, तल्लीन के विवेकभ्रष्ट न थq. केमके केवळी कहे छ के तेम थतां शांति भंग थवाथी शांति तथा केवलिभाषित थथी भ्रष्ट थवाय छे / 18 बीजी भावना ए के चक्षुथी जीवे भला भंडां रूप देखतां तेमां आसक्त के या विवेकभ्रष्ट न य. केके केरळा कहे छे के तेम थतां शांति भंग थवाथी यावत् धर्म भ्रष्ट थवाय छे, / त्रीजी भावना ए के नाकथी जोवे भला मुंडा गंध संघनां तेमां आसक्त के यान विवेकभ्रष्ट न थ. केमके केवळो कहे छे 5 के तेम थतां शांतिभंग थवाथी यावत् धर्म भ्रष्ट थवाय छे. For Private and Personal Use Only