________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुत्रम् // 1113 // Re - पुरुष अदत्त लेनार थइ जाय माटे वारंवार हद बांधनार थर्बु ए नोथी भावना. आचा० पांचमी भावना ए के विचारीने पोताना साधर्मिक पासेथी पण परिमित अवग्रह मागवो; केमके केवळी कहे के के तेम न करनार निग्रंथ अदत्त लेनार यह जाय. मारे साधार्मिक पासेथी पण विचारीने परिमित अवग्रह मागवो. नहि के वगर विचारे | // 1113 // 8 अपरिमित. ए पांचमी भावना, ए भावनाभोथी महाव्रत रुडी रीते यावत् आज्ञा प्रमाणे आराधित थाय छे. ए पीजं महावत. चोथु महाव्रत-"सर्व भैथुन तर्जु छ एटले के देव मनुष्य तथा तिर्यंच संबन्धी मैथुन हुँ यावज्जीवत्रिविधे त्रिविधे करुं नहि." इत्यादि अदत्तादान माफक बोल. व तेनी आ पांच भावनाओछे. त्यां पहेली भावना ए के निर्ग्रन्थे वारंवार स्त्रीनी कथा कह्या करवी नहि केमके केवळी कहे | छे के वारंवार स्त्री कथा करतां शांतीनो भंग थवाथी निर्ग्रन्थ शांतिथी तथा केवळी भाषित धर्मथी भ्रष्ट थाय. माटे निग्रन्थे वारंवार खी कथाकारक न थ ए पहेली भावना. 4 बीजी भावना ए के निर्ग्रन्थे खीओनी मनोहर इन्द्रियो जोवी के चितववी नहि. केमके केवळी कहे के, के तेम करतां शांति ह भंग थवाथी धर्मभ्रष्ट थवाय. माटे निर्ग्रन्थे खीओनी मनोहर इंद्रियो जोवी के तपासवी नहि. ए बीजी भावना. त्रीजी भावना ए के निग्रन्थे स्वीओ साथे पूर्व रमेली रमत-क्रीडाप्रो याद न करवी; केमके केवळी कहे हे के ते याद करतां 18 शांति भंग थवाथी धर्मभ्रष्ट धवाय, माटे निग्रन्थे स्त्रीभो साथे पूर्वे रमेली रमत गमतो संभारवी नहि. ए त्रीजी भावना. व.स RI K .२-बारक A. .. For Private and Personal Use Only