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मा
कर
॥१११२॥
स्वरुष जाणी निथे हास्य करनार न थq, केमके केवली कहे के के हास्य करनार पुरुष मृषा बोली जाय माटे निथे हास्य कर
नार न थवं. केमके केवली कहे छे के हास्य करनार पुरुष मृषा बोली जाय माटे निथे हास्य करनार न थq ए पांचमी भावना. आचा०
ए भावनाओथी महाबत रुडी रीते कायाए करी स्पर्शित अने यावत् आज्ञा प्रमाणे आराधित थाय छे. ए बीजुं महावत.. ॥१११२॥
त्रीजु महाव्रत-" सर्व अदत्तादान तनुं छु, एटले के गाम नगर के अरण्यमा रहेढं थोडु के झाझं, नानू के महोटुं, सचित्त के अचित्त अणदीधेलं [वस्तु] हुँ यावज्जीव त्रिविधे त्रिविधे एटले मन-वचन-कायाए करी लई नहि, लेवरावु नहि. लेनारने अनुमत थउ नहि. तथा अदत्तादानने पडिकमु छ यावत् तवा स्वभावने वोसरावु छु." तेनी आ पांच भावनाओ के.-त्यां पहेली भावना आ के निथे विचारीने परिमित अवग्रह भागयो, पण वगर विवारे अपरिमित २ | अवग्रह न मागवा, केमके केवळी कहे छे के वगर विचारे अपरिमिन अवग्रह मागनार निग्रंथ अदत्त लेनार थइ जाय. माटे विचाहैरीने परिमित अवग्रह मागवो. ए पेहेलो भावना
बीजी भावना ए के निथे रजा मेळवीने आहारपाणी वापरवा. पण रजा मेळव्या वगर न वापरवा; केमके केवळी कहे छ के वगर रजा मेळवे आहारपाणी वापरनार निग्रंथ अदत लेनार थइ पडे माटे रजा मेळवीने आहारपाणी वापरवा ए बीजी भावना.
त्रीजी भावना ए के निग्रंथे अवग्रह मागतां प्रमाण सहित(काळक्षेत्रनी हद बांधी) अवग्रह लेवा. केमके केवळी कहे छे के प्रमाण विना अवग्रह लेनार निग्रंथ अदत्त लेनार थइ जाय माटे प्रमाण सहित अवग्रह लेवो ए त्रीजी भावना.
चोथी भावना ए के निथे अवग्रह मागतां वारंवार हद बांधनार य. केमके केवळी कहे छे के वारंवार हद नहि बांधनार
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