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ed अध्ययननो अधिकार बतावीने उद्देशानो अर्थाधिकार कहे छे
चरिया १ सिज्जा य २ परीसहाय ३, आयंकिया (ए) चिगिच्छा (४) य ॥ तवचरणेणऽहिगारो, चउमुद्दे से नायब्बो २८० 'चरण' चराय ते चर्या, एटले 'वर्द्धमानस्वामिना विहारने आ पहेला उद्देशामां वर्णव्यो छे. बीजा उद्देशामां शय्या ते वसति ( रहेवानुं स्थान) जेवुं महावीरे वापर्यु छे तेनुं वर्णन छे.
त्रीजा उद्देशामां परीसहो आवेथी निर्जरामाटे चारित्र मार्गथी भ्रष्ट न थतां साधुए तेने सहन करवा, अने तेना उपलक्षणथी अनुकूल तथा प्रतिकूल वर्द्धमानस्वामिने जे परीसहो थया ते बतावे छे.
चोथा उद्देशामां भूखनी पीडामां विशिष्ट अभिग्रहनी प्राप्तिमां आहारवडे चिकित्सा [उपाय] करे, अने तप चरणनो अधिकार तो चारे उद्देशामां चाले छे, (गाथार्थ)
ऋण प्रकारे निक्षेपो छे, ओघनिष्पन्न, नाम, अने मूत्रालापक तेमां ओघमां अध्ययन, नाममां उपधानश्रुत एवं चे पदनुं नाम छे, ते उपधान अने श्रुतना यथाक्रमे निक्षेपा करवा ए न्याये उपधान निक्षेपनुं वर्णन करे छे.
नाठवणुवहाणं दव्वे भावे य होइ नायव्वं । एमेव य सुत्तस्सवि निक्खेवो चडव्विहो होइ ॥ २८२ ॥ नामस्थापना द्रव्य अने भाव एम चार प्रकारे उपधानना निक्षेपा छे, तेज प्रमाणे श्रुतना पण चारन छे, तेमां द्रव्यश्रुत अनुपयुक्त (उपयोग विना) नुं छे, अथवा द्रव्य मेळवावा माटे नैनेतरतु छे.
अने भावश्रुत ते अंग उपांगमां रहेलं जे श्रुत छे, तेमां उपयोग होय ते, हवे सुगमनामस्थापना छोडीने द्रव्य विगेरे उप
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