SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 148
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥९३३॥ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir aranमज्जा २ अहे आरामंसि वा अहे उवस्सयंसि वा अप्पंडे जात्र संताणए मंसगं मच्छगं भुच्चा अट्टियाई कंटए गहाय से मायाय एगतमवक मिज्जा, २ अहे झामथंडिलंसि वा जाव पमज्जिय पमज्जिय परद्वबिज्जा ॥ ( सू० ५८ ) गोचरी गयेलो साधु आवा प्रकारनो आहार जाणे के शेरडीना गांठोना वचला टुकडा, अथवा गांठोवाळा टुकडा अथवा पीलेला शेरडीना छोदिकां (छोतरा ) मेरुक (त्यग्र ) शेरडीना सालग ते दीर्घ शाखा ( सांठा) डालग ते एक टुकडो सिंबली मग चोळा विगेरेनी अचित्त थएली सींग (फळी) 'सिंबली थालग' वालपापडीनी थाळी अथवा फलीओ रांधेली होय, आवी वस्तु जो साधुए खावा माटे लीधी होय तो शेरडी विगेरेना कुचा घणा नीकळे, खावानुं थोडं, अने कुचामां कीडीओ विगेरे संख्याबंध जीवो बुरा हाले मरे, माटे अमासुक होय तो पण न लेवी, अने प्रासुक होय तो पण न लेवा, तेज प्रमाणे कोइ जग्याए उळीया बाळां फळ ते फणस विगेरे अने कांडावाळां ते अननास विगेरे फळ पाकेलां टुकडा कर्या होय, अने कोइ गृहस्थ ते साधुने आपे तो पण साधुए लेवा नहि. हवे कोइ गृहस्थ घणो भक्तिमान होय अने बहु आग्रह करे अने पूछे के आप लेशो के ? आ प्रमाणे तेनी प्रार्थना सांभळीने साधु कहे के हे आयुष्यमन ! मने ते लेवुं कल्पतुं नथी, पण जो तारो खास आग्रह होय तो उळीया रहित कांटा रहित एवो जे वचलो फळनो गर्भ छे, ते आप, पण ध्यान राखजे के ठळीया के कांटा न आवे. आ प्रमाणे सांभळीने पेलो गृहस्थ उळीया विनानुं कांटा विनानुं शोधी शोधीने साधुने आपे, पण ते वखते सचित्त भाग तेना हाथमांथी के तेना वासणमांथी आवे तो पोते न ले, ते प्रमाणे अचित्त फळनो गर्भ आपे तो पोते नोद्दि बोले, तेम अणिहि पण न बोले, For Private and Personal Use Only सूत्रम् | ॥९३३॥
SR No.020012
Book TitleAcharanga Stram Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1935
Total Pages328
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy