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पछी ते लेइने ते बगीचामां कोई झाड नीचे अथवा मकानना छापरा नीचे बेसीने ज्यां जीव जंतु एकेंद्रियथी पंचेंद्रिय सुधी 8/ आचा०
न होय त्यां पोते शांतिथी बेसीने फळनो गर्भ लीधेलो होय तेने फरीथी जोइले, अने पोताना के गृहस्थना प्रमादथी ठळीयो के सूत्रम् ॥९३४॥
में कांटो रही गयो होय, तो तेने खातां बाजुए राखीने खाइ रह्या पछी एकांतमा जइने अचित्त जग्या कुंभारनो निभाडो विगेरे होय, त्यां जग्या पुंजी पुंजीने परठवे.
॥९३४॥ ___आ जग्याए केटलाक आचार्यनो एवो अभिप्राय छे के आगळ गळत कोढ विगेरेमां ते साधुने अधिक पोडा यती होय, अने • तेने संसारी न करी शकवाथी तेनी उमर जुवान होय, अने वैद एम सलाह आपे के आ रोगनी शांति माटे मरेला जनावर के
माछलानो वचलो गर्भ तेना उपर बांधवो, आवा अपवादना कारणे छेदमूत्रना अभिप्राय पमाणे कदाच पेला साधुना रक्षण माटे | ली, होय तो पण तेमां रहेल हाडकुं अथग कांटो संभाळथी एकांतमा लइ जइ परठवो अहीं 'भुज' धातुनो अर्थ भोगववानो छे, द पण खावा माटे नहि, जेम पदाति (पायदळ सेना) नो राजा भोग करे हे, अथवा साधु पाट पाटलाने भोगवे छे.
से भिक्खू० सिया से परो अभिहहु अंतो पडिग्गहे बिलं वा लोणं उम्भिय वा लोणं परिभाइत्ता नीहटु दलइज्जा, तहप्पगारं पडिम्गहं परहत्यसि वा २ अफामुयं नो पडि०, से आहच्च पडिगाहिए सिधा तं च नाइदूरगए जाणिज्जा, से तमायाए तत्थ गच्छिज्जा २ पुवामेव आलोइज्जा-आउसोचि वा २ इमं किं ते जाणया दिन्नं, उयाहु अजाणया ? से य भणिज्जा-नो खलु मे जाणया दिन्नं, अजाणया दिन्नं, काम खलु आउसो ! इयाणि निसिरामि, तं भुजह वा णं परिभाएह वा णं तं परेहिं समणुन्नायं समणुसह तो संजयामेव भुजिज वा पीइज्ज वा, नंच नो संचाएइ भोत्तए वा पायए
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