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सूत्रम्
॥६८५॥
(विश्रांति ) ले छे. तेथी ते आश्वास लेवाने माटे जे द्वीप होय; ते आवासद्वीप छे, ते नदी समुद्रना घणा मध्यभागमा [ नदीनी आचा०
& पहोळाइ विशेष होय तेमा बन्ने बाजुए पाणी वहेतुं होय अने वचमां खाली जग्या होय; तो, बेट कहेवाय छे. तेज प्रमाणे समुद्रमां ॥६८५॥ जग्या उपसेली होय तो वरसाद लीधे ते उपसेली जग्याना मेदानमां फळ द्रुप जग्या थाय छे, त्यां] वहाण कोइ पण कारणे नदी
४. समुद्रमां भांगी जतां डूबतां माणसो आश्रय ले छे. आ बेट पण वे प्रकारे छे. जे परववाडीए अथवा महीने पाणीथी भराइ जाय ते
संदीन कहेवाय, अने तेवो बेट जो भरतीना पाणीथी भराइ न जाय तो असंदीन कहेवाय. जेमके सिंहलद्वीप विगेरे छे. अने बहाPणवाळा ते द्वीपनो आश्रय ले छे. अने पाणी विगेरेनो उपयोग करे छे. अने ते बेटथी तेमने आश्रय मळे छे. तेवीज रीते उत्तम
रीते वर्तता साधुने जोइने भव्य जीवो तेनो आश्रय ले छे. ____ अथवा द्वीपने बदले दीप [दीवो] प्रकाश आफ्नार लइए तो ते प्रकाशने माटे होवाथी प्रकाश द्वीप छे. अने ते मूर्य चंद्रमणि विगेरे असंदीन छे. अने बीजो विजळी उल्कापात विगेरेनो संदीन छे. [मूर्य चंद्र प्रकाश आपे पण ते प्रकाश स्थायी अने उपकारक होवाथी लोको आश्रय ले छे. पण तेवा गुणथी रहित विजळीनो प्रकाश नकामो छे अथवा दुःखदायी छे. तेवीन रीते कुसाधु अस्थिर चारित्रवाळो लोकोने धर्मथी भ्रष्ट बनावे छे.] अथवा घणां लाकडां एकठां करी सळगाव्याथी इच्छित रसोइ विगेरे बनाववामा उपयोगी होवाथी असंदीन छे. अने घासना भडका जेवो अग्निनो प्रकाश संदीन छे. [तेज प्रमाणे सुसाधु अने कुसाधुना दृष्टांत समजवां.] जेम आ स्थपुट विगेरेना बताववाथी हेय उपादेयने छोडयु, गृहण करवू, एवा विवेकने वांच्छनारा भव्य जीवोने खुल्लु बताववाथी ते उत्तम साधु उपयोगी छे. ते प्रमाणे कोइ समुद्रना अंदर रहेला प्राणीओने विश्रांति आपनार छे. तेज
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