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सत्रम
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असंयमथी बचेल भिक्षाथी निर्वाह करनार तथा अप्रशस्त स्थान रुप असंयमथी नीकळी गुणोने उत्कृष्टपणे प्राप्त करवाथी उपरी आचा०1४
उपरना प्रशस्त गुण स्थान रुप संयममां वर्तता साधुने शुं स्खलायमान करे ? अर्थात् तेवा उत्तम साधुने अरति मोक्षमा जतां जतां
अटकावी शके के? उ. हा दुर्बळ अने अविनय वाली इंद्रियो छे. तेने अचिंत्य मोह शक्ति अने विचित्र कर्म परिणति शुं न करे ? ॥६८४॥ (अर्थात् कुमार्गे लइ जायज) कह्यु छे के:
॥६८४॥ “कम्माणि णं घणचिक्कणाइ गरुयाई वइरसाराई । णाणटिअंपि पुरिसं पंथाओ उप्पहं णिति" ॥१॥ निश्चे कर्म घणां चीकणां वधारे प्रमाणमां वज्रसार जेवां भारे होय; तो, ज्ञानथी भूषित होय; तेवा पुरुषने पण सारा मार्गथी कुमार्गे लइ जाय छे.
अथवा आक्षेपमां आ 'किम्' शब्द छे तेनो परमार्थ आ छे के, अरति तेवा उत्तम साधुने धारी शके के? उ. नज धारी शके? कारण के, आ उत्तम साधु क्षणे क्षणे वधारे वधारे निर्मळ चारित्रना परिणामथी मोहना उदयने रोकेलो होवाथी लघुकर्मचाळो छ, तेथी तेने अरति कुमार्गे न दोरी शके ते बतावे छे. क्षणे क्षणे विनाविलंबे संयमस्थानना चडता चडता कंडकने धारण करतो | सम्यगप्रकारे चारित्र पाळतो रह्यो छे. अथवा, चडता चडता गुणस्थानने पहोंचतो यथाख्यात-चारित्रना संमुख जतो होवाथी तेने A अरति केवी रीते अटकावी शके ? (न अटकावे.)
अने आवो साधु पोताना आत्मानोज अरतिथी रक्षण करनार छे. एम नहीं पण, बीजाओनी पण अरति दूर करनार होवाथी रक्षक छे, ते बतावे छे. बन्ने बाजुए जेमां पाणी छे ते द्वीप छे; ते द्रव्य, अने भाव एम वे भेदे छे ते द्रव्यद्वीपमां आश्वास
पवनवा ARIS
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