________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
आचा०
॥६६७॥
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
विषयनी मधुरताथी प्रबळ मोहनीय कर्मना उदयथी, अशुभ वेदनीयनो भाव एकदम प्रकट थवाथी, अयशःकीर्त्ति उत्कटपणे थवाथी, आयति (भविष्यनुं हित ) ने तरछोडीने कार्य अकार्यने विचार्या विना महादुःखनो सागर स्वीकारीने वर्त्तमान सुखने देखनारा कुलमां वर्तातो आचार नीचे नांखीने (उत्तम रत्नरुप) चारित्रने त्यजे छे !!! अने तेनो त्याग धर्मेपकरण त्यागवाथी थाय छे, ते बतावे छे. वस्त्र ए शब्दथी क्षौमिक [सूत्रां] कल्प (ख) लीधो छे, तथा पात्रां अने उननी कांबळ अथवा पात्रांनो नियोग तथा | रजोहरण ए धर्मोपकरणाने बेदरकारीथी त्यजीने कोइ साधु फरीथी देशविरति [श्रावकनां व्रत] स्वीकारे छे, कोइ तो फक्त सम्यक्दर्शनज राखे छे, कोइ तो तेनाथी पण भ्रष्ट थइ जाय छे, (वटली जाय छे .)
प्र० आवं दुर्लभ चारित्र पामीने पाछु केम तजी दे छे !
उ - परीषहो दुःखे करीने सहन थाय छे, तेथी क्रमेकरीने अथवा सामटा परिषहो आवतां सहन न करी शकवाथी परिषहथी भागेला मोहना परवशपणाथी दुर्गतिने आगळ करीने मोक्षमार्ग (उत्तम चारित्र) ने त्यजे छे !!! ते रांकडाओ भोगो भोगवत्रा माटे | त्यजे छे, छतां पापना उदयथी शुं थाय? ते कहे छे. -
fame कामोने पोताने वहाला मानी स्वीकारतो भोगना अध्ययवसायवाळो बनवा छतां, पोतानां अंतरायकर्मना उदयथी तेज | क्षणे प्रत्रज्या मुक्या पछी अथवा भोगो प्राप्त थया पछी, अंतर्मुहूर्त्तमां, अथवा कंडरीक राजर्षिनी माफक चारित्र मुक्या पछी एक रात दिवसमा अपरिमाण ( वधारे खावाने) लीघे शरीर भेदाय छे, आ प्रमाणे दुराचारना अध्यवसायथी, अथवा कुकर्म सेवीने शीघ्र मरण पामताने पोताना आत्मा साथे चारित्र पाळवारूप धर्म देहनो भेद थतां तेनुं शरीर अने पचेन्द्रियपणुं अनंतकाळे पण
For Private and Personal Use Only
सूत्रम्
॥६६७॥