________________
ॐ
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kcbatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आचा
का सूत्रम्
*
॥६६॥
%
%-562ROCCESCE
पास मुणी! महब्भयं नाइ वाइज कंचणं (सू० १७८)
(गुरु कहे छे हे शिष्यो!) कर्मना विपाकथी आवेलां बहु दुःखो जे जीवोने छे, जेथी ते जाणीने तमारे तेनां अप्रमादवाळा थर्बु, प. वारंवार आवो उपदेश केम को छो? उ-कारण के अनादि भवना अभ्यासथी न गणाय, तेटला उत्तर परिणामवाळा इच्छामदन विषयोमां गृद्ध धयेला पुरुषो रे, तेथी पुनरुक्ति दोष लागतो नथी, हवे काम (कुचेष्टा) मा जे जीवो आसक्त छे, ते
शुं मेळ वे छे, ते कहे हे-बलरहित (निःसार) तुप (डांगरनां फोतरां) नी मुट्ठी समान औदारिक शरीर जे पोतानी मेळे भंग नाश ल. ना स्वभाववाछं छे, तेना बडे सुख मेळववा कर्मनो उपचय करीने अनेकवार वध (मरण घात) ने मेळवे छे; । प्र-कयो माणस आवा कडवा विपाकवाली संसारी वासनामां रति (आनंद) माने? ते कहे हे
जे मोहना उदयथी आर्त थयेल छ. अने कार्य अकार्यना विवेकने गणनो नथी, ते पाणी जेना वडे बहु दुःख पमाय तेवा में काम विषयोमा गृद्ध थाय छे, अथवा पाणीओने कलेशरुप कृत्यने पोते रागद्वेषथी आकुळ बनेल बाळजीव प्रकर्षथी करे छे. अने तेवां पाप करवाथी तेना कर्मना फळरुप विषाकथी अनेकवार पोने वध पामे छे, (बुरे हाले मरे छे) अथवा पूर्वे बतावेला रोगो
आवतां हवे पछी कहेवातां अकृत्यने बाळ (मूर्ख) जीव करे छे, ते बतावे ठे-गंडमाळा कोढ क्षय विगेरे रोग आवतां ते रोगोनी । वेदनाथी गभराइने तेने दूर करवा माटे बीजा प्राणीओने संतापे छे, लावक विगेरे पक्षीनें मांस खातां क्षय रोग मटशे, आवा कुवा
क्योने सांभळीने जीववानी पोते आशाए पाणीओने महा दु खरुप अकार्यमां पण वर्ते छे, पण आम विचारता नथी, के पोतानां ४ करेलां पापोनां फळ ऊदयमां आव्या विना रहे नहि, माटे उदयमा आवेल छे, तथा कर्म शांत थतां ते उपशम (शांत) याय छे,
वालय
For Private and Personal Use Only