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बंधाय छे, तेने दाहकपणाथी तप ते शस्त्र छे, ते तपना खेदने जाणे ते खेदज्ञ छे. कारणके तेना ज्ञान तथा योग्य अनुष्ठानवडे 21 आचा०
जे अशख-संयम छे, तेने पण जागनारो छे, अने संयम तप खेदने जाणनारो आश्रवनिरोध विगेरेथी भवभ्रमणां कर्म जे पूर्वे
एकठां की छे, तेनो क्षय थाय छे, अने कर्मक्षयथी जे लाभ थाय छे, ते कहे छे:waen
अकर्मनुं वर्णन... __ अकर्म पटले, जेने आठ प्रकारनां कर्ममाथी एक पण कर्म न होय; ते छे, अने ते नारक, तियेच, नर, देव एवी चार गतिमां
भ्रमण करवानो व्यवहार नथीः तथा, पर्याप्त-अपर्याप्त अवस्था नथी; तथा बाळपण, तथा कुमारपणुं विगेरे संसारी व्यपदेशो (जुदी 6 जुदी व्यवस्थान नाम) नथी; अने जे सकर्मी छे, तेने कर्मवडे नारकादि व्यपदेश होय छे.
तथा ते कर्मनी उपाधिवडे एटले, ज्ञानावरणीय विगेरेथी जुदा जुदा विशेषणो कर्म संबंधी थाय छे ते कहे छे:-जेमके, मति, श्रुत अधि, मनःपर्याय ज्ञानवानो होय; तेने तेनी बुद्धिना प्रमाणमां मंदबुद्धिवाळी, अथवा तीक्ष्ण बुदिवाळो कहेवाय छे. (१) तथा चक्षुदर्शनी अचक्षुदर्शनी निद्रालु विगेरे छे. (२) तथा मुखीदुःखी कहेवाय छे. (३) मिध्यादृष्टि, सम्यग पिथ्याष्टि, स्त्रीपुरुष
नपुंसक कषायो विगेरे छे. (४) 8 तथा सोपक्रम निरुपक्रम आयुवाळो, अल्प आवखावालो; विगेरे छे. (५) नारक तिर्यंचयोनीवाळो, तथा एकेन्द्रिय, बे इन्द्रिय, पर्याप्तो-अपर्याप्तो, सुभग-दुर्भग विमेरे छे. (६) उंचगोत्रवाळो, नीचगोत्रवाळो छ, (७) कृपण, त्यागी, निरुप भोगी, निर्षीय छे.(८) आ प्रमाणे आठे कर्मने लीधे संसारी जीवो ओळरवाय छे. जो आवी रीते छे तो शुं करवू ते कहे छे. बानावरणीय विगेरे कर्म छे
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