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सूत्रम्
आचाखरी रीते कोने कडेवो ? ते कई प्रोतना संगनो खरो जाणनारो
॥४३९॥
पणुं भ्रमण करे छे. भाव श्रोतपण शब्दादि काम गुगनो चिपय अभिलाष छे, अने ते वने 'आवर्त' अने श्रोत मळीने आवर्त श्रोतः शब्द बने छे ते बन्नेमां रागद्वेषबडे संग (संबंध) थाय छे, तेने जाणे छे के आ आवर्त अने श्रोतनुं कारण छे. आ जाणनारो
खरी रीते कोने कहेवो ? ते कहे छे, जे अनर्थने जाणीने त्यागे, ते जाणनारो छे. अर्थात् संसार श्रोत ते रागद्वेष रुप संग छे. ४/तेने जाणीने जे त्यागे तेज आवर्त श्रोतना संगनो खरो जाणनारो छे. उपर बताव्या प्रमाणे सुता अने जागताना दोषो तथा गुणोने का जाणनारो क्या गुणो मेळवे, ते कहे छे.
साउसिगच्चाई से निग्गट्टे अरइरइसहे, फरूलयनो वेएइ, जागर वेरोवरए, वीरे एवं दुक्खा पमुख्खसि, जरामच्चुवलो वणिए नरे सययं मृढे धर्म नाभिजाणइ (सूत्र १०८)
ते आत्मार्थी मुनि बाह्य अभ्यंतर ग्रंथ रहित (निय) बनीने शीत अने उष्णतानो त्यागी एटले सुख दुःखने न गणनारो अ। थवा ठंड तापना परिषहने सारी रीते समभावे सहन करनारो संयममां रति (प्रेम) अने असंयममा अरति बतावनारो बनी पीडा करनारी परिषहो अने उपसर्गोनी कठोर वेदनाने सहे छे, पण पीडाकारी मानतो नथी, (जेम गजमुकुमाळना ससराए भीनी माटीनी पाळ बांधी माथामा वळता अंगारा भर्या, ते समये घणी पीडा थइ, छतां तेणे ससरानो उपकार मान्यो, अने केवळ ज्ञान । पामी मोक्षमा गयो. तेम बीजा साधुए करवू) अथवा संयम के तपथी शरीरमा पीडा था परुपता (कठोरपणु) आवे अथवा कर्म लेप दूर थवाथी संसारथी खेदी मनवाळो मोक्षाभिलाषी निराबाध सुखनो चाहक बनीने संयम तपमा पीटा थाय तो पण समभावे
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