________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
आचा०
॥४३८॥
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
बनारो होय; ते वेदवित् कहेवाय छे. तथा, दर्गतिमां पडता जीवने धारी राखनार, तथा स्वर्गमोक्ष अपावनार धर्मने जाणे से धर्मविद छे. ए प्रमाणे, बधां कर्मरुप -मळ, कलंकथी रहित, एवं योगीनुं सुख ब्रह्मचर्य छे, तेने जाणे ते, ब्रह्मवित् छे, अथवा, अढार मकारनुं ब्रह्म छे. आ प्रमाणे, ज्ञान, वेद धर्म, अने ब्रह्मचर्य प्रकर्षथी ( उत्कृष्टपणे) जेनावडे ज्ञेय पदार्थों जणाय; ते प्रज्ञानो छे एटले, | मति विगेरे पहेला भागमां बतावेल ज्ञानवडे जीवलोक जेवे रुपे रह्यो छे तेने जाणे; अथवा जीवलोकने रहेवानुं जे स्थान, जे क्षेत्रलोक छे, तेने पोते जाणे अर्थात् जे शब्दादि विषयोनो राग तजे; तेज, ज्ञानि यथावस्थित लोकतुं स्वरूप जाणे छे, अने तेवो ज्ञानी प्रथम बतावेला गुणवाळो (एटले जे आत्मवान् ज्ञानवान वेदवान् धर्मवान् ब्रह्मवान् ) थोडा अथवा, समस्त मज्ञानवडे लोकोने जाणे तेने मुनि कहेवो; कारणके, जगतनी त्रणे काळनी अवस्थाने माने अथवा जाणे तेने मुनिशास्त्रमां को छे.
धर्म ते चेतन अने अचेतन द्रव्पना स्वभावरूप, अथवा श्रुतचारित्ररूप - धर्मने जाणे; ते धर्मवित् जाणवो.
रुजु (सरल) शानदर्शन- चरित्र नामना मोक्षमार्गनां जे अनुष्टान छे, तेनाथी अकुटिल छे, अथवा यथार्थरीते पदार्थनुं स्वरुप जाणवाथी सरल छे अथवा वधी उपाधिथी शुद्ध से अवक्र (सरल) के आ प्रमाणे धर्म जाणनार रुजु मुनि होय तेने शुं लाभ मळे ते कहे छे. आटले भाव आवर्त्तते जन्म जरा मरण रोग शोकना दुःख आपवाना स्वभाववालो संसार छे, कहां छे के, रागद्वेष वशाविद्धं, मिथ्या दर्शन दुस्तरम् || जन्मात्र जगत्क्षिप्तं प्रमादाद्भ्राम्यते भृशम् ॥१॥ दुस्तर अने जन्मना आवर्त्तमां फेंकायलं जगत् छे. तेमां प्रमादथी जीवो
रागद्वेषना वशी विधाये मिथ्यादर्शनना कारणे
For Private and Personal Use Only
सूत्रम्
॥૩૮॥