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आचा०
॥ ५५८ ॥
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बाजुमा अंश जेम देखाय त्यां संशय थाय छे, ते अर्थ संशय, अने अनर्थ संशय एम ये भेद छे. अहीं अर्थ ते मोक्ष, तथा मोक्षनो उपाय छे, तेमां मोक्षमां संशय नथी, कारण के तेने परम पद एम स्वीकार्य छे, पण तेना उपायमां संशय होय तो पण महत्ति थाय छे, अर्थ संशय ते प्रवृत्ति अंग छे, भने अनर्थ ते संसार अने संसारना कारणो छे, तेना संदेहमां पण निवृत्ति थाय छेज, कारण के अनर्ष संशय ते निवृत्तिनुं अंग छे, एथा अर्थमां अथवा अनर्थमा रहेला संशयने जाणतो होय तेने हेय उपादेयनी महति थाय छे, तेज परमार्थथी संसारतुं परिज्ञान छे, ते बतावे छे, ते परिज्ञानवडे संशयाने जाणनाराथी चार गतिवाळो संसार अथवा तेनुं मूळ कारण मिध्यात अविरति विगेरे अनर्थपणे न परिज्ञाकडे जाणेलुं थाय छे, ते बतावे छे, अने प्रत्याख्यान परिज्ञाबडे त्याग वाय ले, पण जे संशयने नथी जाणतो, ते संसारने पण नथी जाणतो, ते बतावे छे, 'संशयं' संदेहने को प्रकारे न जाणनारानी हेय उपादेयनी प्रवृत्ति नहीं थाय, अने प्रवृत्ति बिना संसार अनित्य छे, अशुचिधी भरेलो छे, घणां दुःख आपनारो छे, निःसार छे. एम वे जाणतो नथी, आ नियंत्र केवी रीते धाय-के ते संशय जाणनारे संसार जाण्यो के ? तथा शुं निश्रय करतो ? उ:- संसारना परिज्ञाननुं कार्य विरतिनी प्राप्ति थाय छे, तेथी सर्व विरतिमां पृष्ठ (श्रेष्ट) विरतिने बाबा कहे छे.
जे छेए से सामरियं न सेवइ, कट्टु एवमवियामओ बिइया मंदस्स बाळया, लद्धा हुरत्था पडिलेहाय आगमिता आणविजा अणासेवणयः ति बेमि ( सू० १४४.)
जे छे एजे निपुण छे, जेणे पुण्य पाप जाण्यां के, ते मैथुन (संसार संबंध) मन वचन कायाथी करतो नथी, तेनेज संसार
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सूत्रमं ॥५५८॥