________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
आचा०
॥२२६॥
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
| अथवा परीचय न थयो होय तो पण ममत्व न करवो एटले कमळ पाणीमां उत्पन्न थया छतां निर्लेप रहे छे, तेम साधुए ते गृहस्थोथी गोचरी विगेरेनो संबंध छतां पण तेनाथी लेपवाळा थवं नही. ते सूत्र कहेशे आ मारो छे ते मारापणुं मूके तेज साधु छे विगेरे तात्पर्यवालुं सूत्र आगळ कहेशे.
आ अध्ययननुं नाम लोक विजय छे.
हवे लोक अने विजय एवा वे पदना निक्षेपा करवा जोइए, तेमां सूत्रा आलापक निष्पन्न निक्षेपमां निक्षेपने योग्य जे सूत्रपदो छे तेमना निक्षेपा करवा, अने सूत्रपदमां बनावेल मूळशब्द ( लोक ) नो अर्थ कषाय नामनो कह्यो छे तेथी लोकने बदले कषायना निक्षेपा कहेवा जोइए ते प्रमाणे नामनिष्पन्न निक्षेपामां बतावेला सामर्थ्यथी आवेला निक्षेपामां जे बताववानुं छे ते निर्युक्तिकार गाथाने एकठी करीने कहे छे
लोगस्स य विजयस्त य गुणस्स मूलस्स तह य ठाणस्स । निख्खेवो कायवो जंमूलागं च संसारो ॥ १६४ ॥
लोकोनो विजयनो, गुणनो, मूळनो, स्थाननो, ए प्रमाणे पांच शब्दनो निक्षेपो करवो जोइए. अने जे मूळ छे ते संसार छे तेथी तेनो निक्षेपो करवो जोइए. ते संसारनुं मूळ कषाय छे. कारण के नरकना जीवो तिर्यचना जीवो तथा मनुष्य अने देवता ए चार गतिरूप संसार वृक्षनुंज स्कंध (थड) छे, तथा गर्भ निषेक कलल अर्बुद ( वीर्य अने लोहीथी बंधातुं शरीर ) मांसनी पेशी विगेरे तथा जन्म जरा ( बुढापो ) अने मरण आ संसारझाडी शाखा ( डाळीओ ) छे, अने द्रारिद्र विगेरे अनेक दुःखोथी उत्पन्न थयेला
For Private and Personal Use Only
सूत्रम्
॥२२६॥