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आचा०
॥२२७॥
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पांदडांनो समूह छे. वळी वहालांनो वियोग, अप्रियनो संबंध, पैसानो नाश, अनेक व्याधि विगेरे रूप सेंकडो फुलोनो समुह छे, तथा शरीर अने मन संबंधी अत्यन्त पीडाजनक दुःखनो समूहरूप-फळ छे. आ वधुं संसाररूप- झाडनुं वर्णन कर्युः ते संसार - झाडनुं मूळ कषायो छे. कारण के, कप एटले संसार. अने आय एटले लाभ. जेनाथी संसारनो लाभ थाय छे, ते कषाय छे. आ प्रमाणे ज्यां ज्यां नामनिध्यन्न निक्षेपामां तथा सूत्र आलापक निक्षेपामां जे जे पदनो संभव थशे (जरुर पडशे ) त्यां त्यां ते ते पदो निर्युक्तिकार साचा मित्र बनीने विवेकथी कहे .
लोगोति य विजअत्तिय अज्झयणे लक्खणं तु निष्फण्णं । गुणमूलं ठाणंतिय, सूत्तालावे य निष्फण्णं १६५ लोकविजय, अध्ययन, लक्षण, निष्पन्न, गुण, मूळ, स्थान, तथा सूत्रालापकमां निष्पन्न विगेरे टुकमां जे क; तेनुं विवेचन करे छे; उद्देश प्रमाणे निर्देशनो न्याय छे, ते प्रमाणे लोक, अने विजयनो निक्षेपो कहे छे. लोगस्स य निक्खेवो अट्टविहो छविहो उ विजयस्त । भावे कसायलोगो अहिगारो तस्स विजएणं ॥ १६६ ॥ लोकनो निक्षेप आठ प्रकारे तथा विजयनो छ प्रकारे छे. भावमां कषाय लोकनो अधिकार छे, अने तेनो विजय करवानो छे ते कहे छे. जे देखाय ते लोक सूत्र प्रमाणे लुक धातुनो लोक शब्द थयो छे.
लोकनुं वर्णन.
धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकायथी व्यत थयेलुं तमाम द्रव्यना आधारभूत, वैशाखस्थान एटले, कमरनी बे बाजुए बने हाथ दइने पग पोळा करी उभा रहेला पुरुषनी माफक जे आकाश, खंड रोकायो छे, ते लेवो; अथवा धर्म, अधर्म, आकाश, जीव, पुद्गल ए
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सूत्रम्
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