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सूत्रम्
॥२२३॥
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विगेरेनी उत्पत्ति हरस मसा जे मांसना अंकुरा छे, तेनी माफक पृथ्वीकायनी उत्पत्ति छे. आचा० | अविकारवाळी ( पडतर ) जमीन खोदवाथी देडकानी माफक पाणीनी उत्पत्ति छ, तथा विशेष उत्तम आहारथी वधवू; अने
४. विपरीत आहारथी हानि यवी. तेज प्रमाणे अर्भक (बाळक ) ना शरीरनी माफक अमिनी तुलना छे. ॥२२३॥
बीजानो मेरेलो अटक्या विना अनियत (एक सरखी नहि ) एवी तिरछी गतिवाळो गाय घोडानी माफक पवन बताव्यो अळता (स्त्रोओना शणगारमा वपरातो लाल रंग ) थी, तथा झांझरथी शणगारेली जुवान स्वीनी लताथी विकार पामता कामीपुरुषनी है Pमाफक वनस्पति खीले छे. ए प्रमाणे अनेक प्रयोगो छे, तथा ऊंचा अभिप्रायथी माथु उघाडीने (खुलासाथी) सूक्ष्मवादर-एकेन्द्रिय ४/ त्रण चार इन्द्रियवाळा, तथा पांच इन्द्रियवाळा संज्ञी तथा असंज्ञी तथा पर्याप्ता तथा अपर्याप्ता विगेरे जीवोना भेदो बतावी; तथा तेमना दशस्त्र ख अने परकायवाळां वतावी तेना वधमां बंध, अने कर्मथी छुटवा विरति वतावी, तेनेज चारित्र बताव्यु; एटले जीवनी रक्षा
करवी; तेज चारित्र छे, अने जीवरक्षा करनारज चरित्रने अनुभवे छे, तेवू पहेला अध्ययनमा बताव्युं छे अने आ बीजा अध्ययनमा बताव्यु छे के:
शस्त्रपरिज्ञा नामना अध्ययनने मूत्रअर्थथी भणेला साधुने अध्ययनमा बतावेला पृथ्वीकाय विगेरे जीवोना भेदने मानतो तेनी + रक्षाना परिणामवाळो सर्व उपाधियी शुद्ध, अने तेना उत्तम गुणथी रंजीत थइ; गुरुए वडोदीक्षारुप पंचमहाव्रत जेने अर्पण कर्या छे
तेवा साधुने जेम जेम रागादिकपायवाला लोक, अथवा शब्दादि विषयलोक ( रागद्वेषमां, अथवा इन्द्रियोना विषयमां रंजीत थयेला
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