________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandie
-C+
सूत्रम्
॥२४७॥
CK
पूछे तेने आश्रयी जाणई (तैजस अने कार्मण शरीर भव्य जीव साथे अनादि काळयी जोडाएलां छे. अने जीव मोक्षमा जतां ते बने 5 आचा० जीवथी जुदां पडे छे ते अनादिसांत कहेवाय छे.)
४. अनादि अपर्यवसान ते धर्म अधर्म आकाशना संबंधी छे. (तेमनी स्थिति पूर्वनी जेपीछे, चीज हमेशां रहे छे.) ॥२४७ गणना स्थान-एक वेथी मांडीने शीर्ष पहेलीका मुधी जे गणत्री छे. ते लेवी. (जैनमा परार्ध उपरांत संख्या छे ते अनुयोगद्वार ४
सूत्रमा बतावेलो छे, त्यांथी जोवी.)
संधान स्थान-तेचे प्रकारे छे. द्रव्यथी अने भावथी छे. द्रव्यमी छिन अने अछिन्न एम बे भेदे छे. ते स्त्रीनी कांचळी विगेरेना ४ टुकडा करीने सांधवानुं छे. अने अछिन्न संथानमा पक्ष्म उत्पद्यमान तंतु विगेरेनुं जोडाण छे. (ताणो वाणो कपडामा जोडाय ते.) म भाव संधान प्रशस्त अने अप्रशस्त एम वे भेदे छे तेमा प्रशस्त अछिन्न भाव संधान उपशम क्षपक श्रेणिए चढता मनुष्यने अपूर्व
संयमस्थान एक सरखांज होय छे. पण वचमा तुटक पडती नथो अथवा श्रेणि सिवाय, प्रवर्धमान कंडकनां लेबां. छिन्न प्रशस्त | भावसंधान भावथी औदयिक विगेरे बीजा भावमा जइने पाछा शुद्ध परिणामवाला थइने त्यां आवतां थाय छे. 7 अप्रशस्त अछिन्न भाव संघान उपशम श्रेणिएथी पडतां अविशुद्रमान परिणामवाला मनुष्यने अनंतानुबंधि मिथ्यात्वना उदय
सुधी जाणवू-अथवा उपशम श्रेणि सीवाय कपायना वशथी बंध अध्यवसाय स्थानोने चढतां चढतां अवगाह मान करनाराने होयछे. 5 अप्रशस्त छिन्नभाव संधान ते औदयिक भावथी औपशमिक विगेरे बीजा भावमा जइने पाछा त्यांज औदयिक भावमां आवे ते छे. है आ द्वारनुं जोडकुं साथेज कयुं एटले संधानस्थान द्रव्य विषयतुं पहेलुं छे, अने पछीनुं भाव विषयतुं छे अथवा भावस्थान जे कषा
25२-ॐॐॐॐॐ
For Private and Personal Use Only