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ॐ
॥२४६॥
आटलां संयमनां स्थान सामान्यथी कह्यां. हवे विशेषथी कहे छेआचा०४ सामायिक छेदोपस्थापनीय परिहार विशुद्धि-ए त्रणनी दरेकनां असंख्येय प्रदेश लोकाकाश तुल्य संयम स्थान छे अने सूक्ष्म संप-४
द्र रायनी अंतरमुहूर्तपणानी स्थिति होवाथी अंतमुहर्तना समय बरोबर असंख्येय संयम स्थान छे. यथाख्यात चारित्रहुँ जघन्य उत्कृष्ट ॥२४६॥ सीवाय एकज संयम स्थान छ, अथवा संयम श्रेणिनो अंदर रहेला संयम स्थानोने लेवां, ते आ क्रमे छे
__ अनंत चारित्र पर्यायथी बनेलं एक संयम स्थान छे. असंख्येय संयम स्थानतुं बनेटु कंडक छे. ते असंख्यात कंडकथी उत्पन्न थयेल छ स्थान- जोडकुं छे, तेथी असंख्येय स्थानरूप श्रेणि छे...
पग्रह स्थान-पकर्षपी जे वचन ले गाय (माननीय थाय) ते प्रग्रह वाक्यवालो नायक (नेता) जाणवो. ते लोकिक अने लोकोतर एम बे प्रकारे छे तेनु स्थान ते प्रग्रहस्थान छे. लौकिकमां माननीय वचनवाला राजा युवराज महत्तर (राजानो हित शिक्षक) & अमात्य (प्रधान) राजकुमार छे. लोकोत्तरमां पण आचार्य उपाध्याय प्रवृति (प्रवर्तक) स्थविर गणावच्छेदक हे. M योध स्थान-आ पण पांच प्रकारे आलढ-प्रत्यालीढ-वैशाख मंडल समपाद ए रीते छे
___ अचळ स्थान-आ स्थान चार प्रकारे छे, तेना सादि पर्यव सान विगेरे छे ते बतावे छे. परमाणु विगेरे द्रव्यनो एक प्रदेश विगे-18 दिरेमा जघन्यथी एक समय सादि सपर्यवसान अवस्थान छे. अने उत्कृष्टथी असंख्येय काळ छे. अने सादि अपर्यवसान स्थान सिदोन
भविष्यना काळरूप छे. सिद्धोर्नु मोक्षमा जर्बु ते आदि अने त्यांथी कोइपण वखते खसवानुं नथी. माटे अनंत छे. 27 अनादि सपर्यवसान स्थान अतीत अद्धा रूपर्नु शैलेशी अवस्थाना अंत समयमां कार्मण अने तैजस शरीर धारनारा जे भव्य जीव
COUNSAHAK
SHRSHA-KA-
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