________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
आचा०
॥२३४॥
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वाळं द्रव्य एकपणे होवाथी आंखथीज रस पण खाटो-मीठो परखावो जोइए, कारणके रुप देखाय तेम रस पण जणावो जोइए, एटले रूप अने रस साथै देखाय. तो सर्वथा अभेदपणं छे, पण तेम तथी. रस पारखत्रामां जीभतुंज काम छे माटे कई अंशे घट अने वस्त्र जेम जुदा छे तेम कंइ अंशे गुण आत्माथी जुदा छे. आ प्रमाणे भेद अने अभेद एम वे बताववाथी शिष्य गराइने आचार्यने पूछे छे के बने रीते मानवामां दोष आवे छे. तो केम मानीए ? आचार्य कहे छे— एटला माडेज दरेकमां कंइ अंशे भेद अने कंइ अंशे अभेद मानतुं सारं छे एटले अभेद पक्षमां द्रव्य पोतेज गुण छे. अने भेद पक्षमां भाव गुण जुदो छे. तेज प्रमाणे गुण अने गुणी पर्याय अने पर्यायी सामान्यने विशेष अवयव अने अवयवनो भेद अने अभेदनी व्यवस्था बताववा वडेज आत्मभावन सद्भाव थाय छे. कां छे के—
दव्वं पज्जवविजुयं, दव विउत्ता य पजवा णत्थि । उप्पायइिभंगा, हंदि दवियलक्खणं एयं ॥ १ ॥ द्रव्य ते पर्यायथी जुदुं छे. अने द्रव्यथी जुदा पर्यायो छे एवं क्यांय नथी. पण उत्पाद, स्थिति अने नाश एवा पर्यायोवाळं द्रव्यलक्षण जाणवु नयास्तव स्यात्पदलांछिता इमे, रसोपविद्धा इव लोहधातवः । भवन्त्यभिप्रेतफला यतस्ततो, भवन्तमार्याः प्रणता हितैषिणः ॥ २ ॥
हे भगवंत ! तमारा कहेला नयो स्यात् पदे करीने शोभे छे. जेम लोह धातु रसे करीने व्याप्त थयेली ( सोनुं बनेली ) इच्छित फळने आपनारी छे. तेथी उत्तम पुरुषो जे हितना वांच्छको छे तेओ नमस्कार करीने आपने आशरे रहेला छे. स्पादनाद मतने
For Private and Personal Use Only
सूत्रम् ॥२३४॥