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आचा०४
सूत्रम्
॥३७॥
॥३७॥
जोइने प्रतिज्ञा करी के, जो मारुं 'तप-तेन' होय; तो, चीजा भवमां लश्कर, वाहन, राजधानीसहित पुरोहित, जेणे मने दुःस्त्र दीधुं छे, ते बधानो नाश करीश. ते प्रमाणे पाछळथी देवता थइने नाश कर्यो, तेज प्रमाणे मानना उदयथी बाहुबळीए प्रतिज्ञा करी के प्रथम दिक्षा लीधेला नाना भाइओने हुं केवीरीते नमस्कार करूं. कारण के तेओ केवळज्ञानी थया छे, अने हुं छदमस्थ ज्ञानवाळो | छ. तेज प्रमाणे कपटना उदयथी मल्लिस्वामीना जीवे पूर्व भवमां वधारे उंचं पद लेवा बीजा मित्र साधुओने ठगवा माटे कयु हतुं एटले पेला मित्रोने खबडावीने पोते उपवास करेल हता ते, तथा लोभना उदयथी परमार्थ न जाणनारा वर्तमाननो लाभ जोनार यतिनो वेश राखनारा मास क्षपण (महीना महीनाना उपवास) करनारा छतां प्रतिज्ञा (नियाj) करे छे, (अर्थात् क्रोध, मान, मायाना लोभथी चारित्र भ्रष्ट न करवं. ते वताव्युं छे.) ___ अथवा वसुदेव माफक संयमर्नु अनुष्ठान करतो नियाj न करे के हुँ आवता भवमां आवा भोग भोगवनारो थाउं अथवा गोचरी विगेरेमा गएलो एवी प्रतिज्ञा न करे के मने आवीज गोचरी मळवी जोइए, अथवा जैन मतमा स्याद्वाद प्रधान होवाथी जिन वचनमा एकांत पक्ष ग्रहण न करे, ते अप्रतिज्ञ जाणवो, जेम के मैथुन विषय छोडीने कोइपण जग्याए कोइपण नियमवाली प्रतिज्ञा न करवी जेथी कड्यं छे केः"न य किंचि अणुण्णायं, पडिसिद्धं वावि जिणवरिंदेहिं । मोनुं मेहणभावं न तं विणा रागदोसेहिं ॥१॥"
निनेश्वरे कंइपण कल्पनीयनी आज्ञा आपी नथी. अने कारण वडे कोइपण जातनो निषेध पण कर्यो नथी; पण तीर्थकरोनी आ
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