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रुधिर वैकारिकी
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रूप है यहाँ आक्रमण का लक्ष्य सन्धियाँ होती हैं । बहुसन्धिपाक को देखकर सन्धायी - कास्थि में स्थित आमवात का भ्रम हो सकता है । उस भ्रम को ज्वर तथा गले की खराबी और भी पुष्ट कर देती है । इस रोग में नीलोहा के सिध्म टाँगों पर बनते हैं साथ में अतिरक्तिमा तथा शीतपित्त भी रहता है । सन्धिपाक का मुख्य कारण सन्धि में लस्य उत्स्यन्द का होना है । यह रोग और हैनकीय नीलोहा दोनों भाई-भाई हैं पर यह छोटा भाई माना जावेगा ।
आधुनिक ज्ञान का विचार करने पर पता चलता है कि नीलोहा के साथ इसका सम्बन्ध जोड़ना एक प्रकार से अन्याय है । आजकल इसे उत्स्यन्द पूर्वी रोगस्थिति ( exudative diathesis ) कहते हैं । प्राग्विस्थिति के दो रूप हैं एक औदरिक जिसे हम हैनकीय नीलोहा कहते हैं और दूसरा सन्धिपाकीय जिसे शूनलीनीय लोहा कहा जा रहा है ।
द्वितीयक ( उत्तरजात ) नीलोहा ( Secondary purpuraa )
वाश्रित रक्तस्राव के अनेक कारण हो सकते हैं और उनके पीछे एक दूसरे से पूर्णतः भिन्न कारण भी देखा जा सकता है । कितनी ही वैषिक और औपसर्गिक अवस्थाओं में यह देखा जा सकता है । मस्तिष्क गोलाण्विक मस्तिष्कछदपाक में, लोहित ज्वर में अथवा तन्द्रिक ज्वर में उत्कोठ ( rash ) के साथ त्वग्गतरक्तस्राव एक गम्भीर घटना होती है । किसी वैषिक कारण से केशाल- प्राचीर को क्षति पहुँच कर ही ऐसा सम्भव होता है । रोगाणुरक्तता ( septicaemia ) के साथ जो नीलोहाङ्कीय रक्तस्राव पाया जाता है उसका भी हेतु यही दिया जा सकता है
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अस्थिमज्जा के रोग के कारण बिम्बाणुओं की कमी से भी नीलोहा उत्पन्न होता है यह एक अभ्यवर्ग में लिया जा सकता है। यह उत्तरजात बिम्बाण्वपकर्ष अस्थिमज्जा के अर्बुदों में, लसवाहिन्य सितरक्तता तथा घातक रक्तक्षय में हो जाता है । अनघटित या अचयिक रक्तक्षय होने पर ये रख्तस्राव खूब मिलते हैं क्योंकि वहाँ अस्थिमज्जा के सभी तत्व कम हो जाते हैं जिनमें बृहन्न्यष्टिकोशा ( megakaryocytes ) भी कम होते हैं जिनसे बिम्बाणुओं का निर्माण होता है ।
शोणप्रियता ( Haemophilia )
जिस रोग में थोड़े से आघात से रक्तस्राव आरम्भ हो जावे और बड़ी कठिनता से रोका जा सके तथा जिसके पीछे पीढी दर पीढी रोग के मातृक पारेषण ( hereditary transmision ) का इतिहास मिले वह शोणप्रियता ही है । इस रोग में व्याधिमाता से पुत्र में जाती है । जितनी कुलज प्रवृत्ति इस रोग में देखी जाती है अन्यत्र कहीं नहीं मिलती इसी से ( the most hereditary of all hereditary ) शब्द का प्रयोग ब्वायड ने इसके लिए किया है । सुप्रसिद्ध क्लीथैरो परिवार में यह रोग गत २०० वर्ष तक ढूंढा जा सकता है । बुलक तथा फिल्डे ने अपनी खोजों से यह प्रमाणित कर दिया है कि यह रोग केवल पुरुषों में ही होता है स्त्रियाँ
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