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६२ अभय रत्नसार । देशावकाशिक-व्रत-विषइओ. ॥१०॥ ___इग्यारमे पोषधोपवास व्रते पांच अतिचार;संथारुच्चार-विही पमाय तह चेव भोअण्णाभोए । पोसह लीधे संथारा तणी भूमि बाहिरला थंडिला दिवसें शोध्यां पडिलेह्यां नहीं। मातरं अणपडिलेडं वावरिउं, अणपुंजी भूमिकाइ परठविउं, परठवतां चिंतवण न कीधो, 'अणुजा णह जस्सुग्गहो' न कह्यो, परठव्या पूठे वार त्रण वोसिरामि वोसिरामि न का । पोसह सालामांहि पइसतां नीसरतां निस्सिही आव स्सही कहेवी विसारो। पृथ्वीकाय, अप्काय, तेऊकाय,वाउकाय, वनस्पतिकाय,सकाय,तणा संघट्ट परिताप उपद्रव हुआ। संथारा पोरसि तणो विधि भणवो वोसारिओ। पोरसीमांहि उध्या। अविधि संथारं पाथरयु। काल वेलाये पडिकमण न कीधु। पारणादिक तणी चिन्ता निपजावी। कालवेला देव वांदवा वीसारिया।
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