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वृहद-अतिचार। ६१ आहट दोहट चिंतव्यु। वचन सावध बोल्यु। काय अणपडिलेह्य। हलाव्यु। छती वेलाई सामायिक न लीधु। सामायिक लई उघाडे मुखे बोल्या, उंघ आवी कीधी। वीज दीवा तणी उजाही लागी। कण, कपासीया, माटी, मीठं, नील-फूल, हरि-कायना संघट्ट हुआ। पुरुष तिर्यंचना संघट्ट हुआ। तथा स्त्री तियंची आभडी। मुहपत्तीयों संघट्टी। सामायिक अण्ण पूरिउं पारिउं, पारउं विसारिउं। नवमे सामा यिक-व्रत-विषइओ० ॥६॥
दशमे देशावकाशिक व्रते पांच अतिचार;आणवणे पेसवणे० ॥ आणवणप्पओगे पेसवणप्पोगे सदाणुवाइ रूवाणवाइ बहिया पुग्गल-परखेवे ॥ नियमित भूमिकामांहि बाहिर थकी कांई अणाव्यु। आप कन्हाथी बाहिर मोकल्यु। साद करी, रूप देखाडी, कांकरी नाखी आपणपणु छतुं जणाव्यु॥ दशमे
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