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वृहद्-अतिचार। ६३ पोसह असूरो लीयो, सवारो पारीयो। पर्व तिथि आवी पोसह लीधो नही ॥ इग्यारमे पोषधोपवास व्रत-विषइओ०॥ ११ ॥
बारमे अतिथि-संविभाग-व्रते पांच अति चारः-सचित्ते निक्खिवणे ॥ सच्चित्त वस्तु हेठे उपरि थके महात्मा प्रतें असूझतु दान दीधु। अदेवा तणी बुद्धे सझतु फेडी असूझतु की । देवा तणी बुद्धे असूझतु फेडी सूझतु की।
आपणु फेडी परायु कोधु। विहरवा वेला टली गया। पछे असुर करी महातमा तेड्या। मच्छरलगे दान दीधु। गुणवंत आवे भगति न साचवी । छती शक्ति साधर्मिक-वात्सल्य न कीधु । अनेराई धर्मक्षेत्र सीदाता छती शक्त उद्धरया नहीं ॥ बारमें अतिथि-संविभाग-व्रतविषइयो० ॥ १२॥
संलेहणा तणा पांच अतिचार। इहलोए परलोए ॥ इहलोगासंसप्पओगे परलोगासंसप्प
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