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अभय रत्नसार ।
कीधां, कराव्यां, अनुमोदीयां । कुविकल्प चिंतव्या । अनंग क्रीडा कीधी । पराया विवाह जोड्या । काम भोग तणे विषे तीत्राभिलाष कीधो । कुस्वप्न लाधां । नट विट पुरुषशु हांसुं कीभुं । चौथे मैथुन-व्रत वि० ॥ ४ ॥
पांच मे परिग्रह - परिमाण व्रतें पांच अतिचार | धरण धन्न खित्त वत्थू । धन, धान्य, क्षेत्र, वस्तु, रूप्य, सुवर्ण, कुप्य, द्विपद, चतुष्पद ए नवविध परिग्रह तथा नियम उपरांत वृद्धि देखी मूर्च्छा लगे संक्षेप न कीधो । माता, पिता, पुत्र, कलत्रादि तणे लेखें कीधो । परिग्रह परिमाण लेई पढ्यो नही, पढ़ी विसारियो । नियम विसारियो । पांचमे परिग्रह परिमाण व्रत विषइओ० ॥ ५ ॥
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छट्टो दिग्-विरमण तें पांच अतिचार ॥ गमणस्स य परिमाणे ॥ ऊर्ध्वदिसि, अधोदिसि, तिर्यगदिसि जायवा आयवा तणो नियम जे
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