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अभय रत्नसार ।
पहला प्राणातिपात व्रत - विषइओ अनेरो० ॥ १ ॥
बीजे स्थल - मृषावाद - विरमण व्रतें पांच अतिचार | सहसा - रहस्स-दारे, मोसुवएसे य कूड लेहे य ॥ सहसात्कार; - किuहिक प्र प्रयुक्तो आल दीधो, किणहिक प्रतें एकांते वात करतां देखी 'तुम्हें तो राज- विरुद्ध चिंत वोछो' इत्यादिक कयुं । स्वदार-मंत्र-भेद की । अनेराई किणहीनो मंत्र आलोचमर्म प्रकाश्यो । किणहीनें कूडी बुद्धि दीधी । कूडो लेख लिख्यो । कूडी साख भरी । थापण - मोसो कीधो । कन्या - ढोर- गाय-भूमि -संबंधिया लेहणें देह व्यवसाय - वाद - वढावढ करतां मोटकु झूठ बोल्युं । हाथ-पग -भणी गाल दीधी । करडका मोड्या | अधम्मं वचन बोल्यां । बीजे मृषावाद व्रत- विषइओ० ॥२॥
त्रीजे अदत्तादान - विरमण व्रतना पांच अतिचार । तेनाहडप्पओगे । घर, बाहिर, क्षेत्र,
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