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भक्ष्याभक्ष्य विचार ।
वर्जित वनस्पतियाँ |
जिन वनस्पतियोंके खानेसे तृप्ति नहीं होती और साथ ही बहुत हिंसा होनेका भय रहता है, उनके नाम ये हैं
और वर्जित होनेका कारण
नाम
ईख – कितना भी खाइये, तृप्ति नहीं होती। रस चूस कर सीठी फेक देते हैं, उससे बहुत संमूर्च्छिम जीव उत्पन्न होते हैं और मिठाईके मारे चींटी आदि त्रस जीव भी उसके ऊपर टूट पड़ते हैं, जो जानवर या आदमी के पैरों तले पड़ कर मर जाते हैं ।
कुम्हड़ा, पेठा, जामुन | इन सबमें भी संमूच्छिंम जीवोंकी उत्पत्ति करौंदा, बेर, गुन्दी और हिंसा का भय रहता है इसलिये त्याग देना ही ठीक है
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अञ्जीर - इसमें बहुत बीज होते हैं, अतएव त्यागने योग्य है । शहतूत, फालसे, कितना भी खा जाओ तृप्ति नहीं होती, इसीलिये वर्जित है ।
सिंघाड़ा -- कामवर्द्धक हैं, अतः त्याज्य है । तोड़ते वक्त. बहुत जीव मरते हैं ।
वालोल- ताजा मिलना मुश्किल है, और थोड़ी देर रखनेसे भी उसमें त्रस जीव उत्पन्न हो जाते हैं ।
दर्शन - विरुद्ध तथा लोक विरुद्ध वर्जित वनस्पतियाँ ।
नाम और कारण ।
चिंचड़ी-लम्बी सौंपके आकार की होती है। अशुद्ध परिणामी है, अतः वर्जित है ।
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